पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/११०

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सुदा, १०६ *पंचालसे मुंह मोड़ना कठिन नहीं है, किन्तु वहाँ मेरै वृद्ध मातापिता हैं। मुझे छोड़ माँका दूसरा पुत्र नहीं हैं। माँने बचन लिया है। कि मरने के पहले मैं उसे एक बार जरूर देखें। 'मै मके वचनको तुड़वाना नहीं चाहती। मैं तुझे सदा प्रेम करूगी, सुदास् ! तेरे चले जानेपर भी। मुझे मालूम हैं, मैं तेरे लिए रोया करूंगी, जीवनके अन्त तक । किन्तु हमें दो वचनको नहीं तोड़ना चाहिए-तुझे अपनी माँ के और मुझे अपने हृदय वचनको ।, 'तेरे हृदयको वचन क्या है, अपाले ११ *कि मानव-मुमिसे अमानव-भमिमें न जाऊँगी । अमानव-भूमि, पचाल-जनपद है। “हाँ, जहाँ मानवका मूल्य नहीं, स्त्रीको स्वातन्त्र्य नहीं । 'मैं तुझसे सहमत हूँ। ‘और इसके लिए मैं तुझे चुम्बन देती हूँ।'-कह अक्षु-सिक कपोलको अपालाने सुदास्के ओठोंपर कर दिया। सुदास्के चुम्बनकर तेनेपर उसने फिर कहा-'तू जा, एक बार मका दर्शनकर आ; मैं तेरे लिए मद्रपुर में प्रतीक्षा करूंगी।' अपालाके भोले-भाले शब्दोंको सुनकर सुदासूको अपने प्रति ऐसी अपार घृणा हो गई, जिसे वह फिर कभी अपने दिलसे नहीं निकाल सका। माँ-बापको देखकर लौट आनेकी बात कहकर ही सुदा जेतासे घर जानेके लिए आज्ञा माँग सकता था। जेता और अपाला दोनोंने इसे स्वीकार किया। प्रस्थानके एक दिन पहले अपालाने अधिकसे अधिक समय सुदास्के साथ बिताया। दोनोंके उत्पल-जैसे नीले नेत्र निरन्तर अश्रुपूर्ण रहते। उन्होंने इसे छिपानेकी भी कोशिश न की। दोनों घंटों अधरोंको चूमते, आत्म-विस्मृत हो आलिंगन करते अथवा नीरव अश्रुपूर्ण नेत्रोंसे एक-दूसरेको देखते रहते ।