पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/११६

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सुदाम्, ११५ मतिको हरनेवाले धर्मों कर्मों का मायाजाल इतना नहीं फैला था। मैं सोचता था, राजाकी इस दस्युवृत्तिको कम करें; किन्तु वैसा करने में अपनेको असमर्थ पाया । उस वक्त मेरे लिए तेरी माँ ही सब कुछ थी ; किन्तु पीछे जब मैं भग्न-मनोरथ, निराश हो गया, तो इन पुरोहितोंने अपनी कविताओंके ही नहीं, कन्याओंके फदे में मुझे फंसाया ; इन्द्राणीको दासियोंकी उपमा दे सैकड़ों दासियोंसे रनिवास भर दिया । दिवोदासके पतनसे शिक्षा ले तू सजग रहना, प्रयत्न करना, शायद कोई रास्ता निकल आय और दस्युवृत्ति हट जाय। किन्तु सुदा-जैसे सहृदय दस्युको हटाकर प्रतर्दन-जैसे हृदयहीन वंचक दस्युके हाथमे पचालको दे देना अच्छा न होगा। मैं पितृलोकसे देखता रहूंगा तेरे प्रयतको और बड़े सन्तोषके साथ, पुत्र । दिवोदास देवलोकको चला गया। सुदास् अब पचालका राजा हुआ था। ऋषि-मडली अब उसके गिदं मॅडराती थी । सुदाको अव पता लगा कि इन्द्र, वरुण, अमि, सोमके नाम से इन सफेद दाढ़ियोंने लोगको कितना अन्धा बनाया है। उनके कठोर फदेणे सुदासू अपनेको जकड़ा पाता था । जिनके लिए वह कुछ करना चाहता था, वह उसके भावको उलटा समझने के लिए, उसे अधार्मिक राजा घोषित करनेके लिए तैयार थे । सुदासको वह दिन याद आ रहे थे, जब कि वह नगे पैर फटे कपड़ों के साथ अशात देशीमें घूमता था। उस वक्त वह अधिक मुक था। सुदाकी हार्दिक व्यथाको समझनेवाला, उससे सहानुभूति रखनेवाला वहाँ एक भी आदमी न था । पुरोहित-ऋषि-उसके पास अपनी तरुण पोतियों, पर-पोतियोंको भेजते थे और राजन्य-प्रादेशिक सामन्त—अपनी कुमारियोंको ; किन्तु सुदाम् अपने को आग लगे घर में बैठा पाता था । वह चन्द्रभागाके तीर प्रतीक्षा करती उन नीली आँखौंको भूल नहीं सकता था। सुदास्ने सारे जन–आर्य-अनार्य दोनों की सेवा करने की