पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/१२

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निशा

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निशा में था, अपने डडे मे बँधी एक लकड़ी निकाल कर कमर से बँधी चमड़े की पतली रस्सी को चढ़ा कमान तैयार की, फिर न जाने कहाँ छिपाये हुए तीक्ष्ण पाषाण फल वाले चाणको निकाल चौबीस पुरुष हाथ मे थमा उसे भीतर कर खुद उसकी जगह आ खड़ा हो गया। चौबीस पुरुष ने प्रत्यचा को और कसा, फिर तानकर टकार के साथ वाण छोड़ एक मैट्टिये की कोख में मारा । मेहिया लुढ़क गया, किन्तु फिर सँभल कर जिस वक्त वह अधाधुन्ध आक्रमण की तैयारी कर रहा था, उसी वक़्त उस पुरुष ने दूसरा वाण छोड़ा। अबकी भेड़ियेको घाव करारा लगा था। उसे निश्चल देख दूसरे भेड़ियै उसके पास पहुँच गये। पहले , उन्होंने उसके शरीर से निकलते हुए गरम खून को चाटा, फिर उसे काटकर खाने लगे ।

उन्हें खाने में व्यस्त देख, फिर लोगों ने शिकार उठाया और सतर्कता के साथ दौड़ते हुए आगे बढना शुरू किया। अबकी बार मा सबसे पीछे थी, और बीच-बीचमे धूम-घूमकर देखती जाती थी। आज बर्फ नहीं पड़ी थी, इसीलिए उनके पैरों के चिह्न चाँदनी रात मे रास्ते को अच्छी तरह बतला सकते थे । गुहा आध मोल से कम दूर रह गई होगी कि भेड़िए का झएड फिर पहुँच गया। उन्होंने शिकार को फिर जमीन पर रख हथियारों को संभाला। अबकी धनुर्धर ने कई वाण चलाये, किन्तु वह क्षण भर भी एक जगह न ठहरने वाले भेड़ियों का कुछ न कर सका } कितनी ही देरकी पैतरेबाज़ीके बाद चार मैडिये एक साथ पौड़शी तरुणी के ऊपर टूट पड़े। बगल मे खड़ी माने अपना भाला एक भेड़िये के पैट मे घुसा ज़मीन पर गिरा दिया, किन्तु बाकी तीन ने घोड्शी की जधिमे चोटकर गिरा दिया और बात हीं बात मे उसका पेट चीरकर अतड़ियाँ बाहर निकाल दीं। जिस वक्त सबका ध्यान षोड़शी कै बचाने में लगा था, उसी वक्त दूसरे तीनने पीछे से खाली पा चौबीसे पुरुष पर हमला किया और बचाव का मौका जरा भी दिये बिना ज़मीन पर पटक कर उसकी भी लाद फाड़ दी । जब तक लोग उधर ध्यान दें तब