पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/१२०

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प्रवाहण

और मै उसके लिए सदा तैयार रहती हूँ। लोपाकी पिंगल आँखें कही दूर देख रही थीं । उसके पिगल कोमल केशको प्रातःसमीर कम्पित कर रहा था । जान पड़ता था, लोपा वहाँ नहीं है। प्रवाहणने लोपाके केशोंको अंगुलियोंसे स्पर्श करते हुए कहा‘लोपा, तेरे सामने मै अपनेको खर्ब समझता हूँ।' “खर्ब १ नहीं, मेरे प्रवाहण'–उसे अपने कपोलसे लगाते हुए लोपाने कहा- मैं तुझपर अभिमान करती हूं। मुझे वह दिन याद है, जब मैने बुके साथ आए आठ वर्षके उस शिशुको अपने शिशुतर नेत्रोंसे देखा था। मैं उस वक्त तीन या चार वर्ष की थी; किन्तु मेरी स्मृति उस बाल-चित्रको अकित करने में गृन्नती नहीं कर रही । मुझे वह पीत कुचित केश, वह शुक-सी नासा, वह पतले लाले अधर, वह चमकीली नीली बड़ी-बड़ी आँखें, वह तप्त सुवर्ण गात्र याद है, और यह भी याद है, माँ ने मुझसे कहा-पुत्री लोपा, यह तेरा भाई है। मै लजा गई थी; किन्तु माँने तेरे मुंहको चूमकर कहा-पुत्र प्रवाहणे, यह तेरी मातुल-पुत्री लोपा लजाती हैं, इसकी लाज हुटा ।' और मै तेरे पास गया । तूने मामी सुगन्धित तरुण केशों के पीछे मुंह छिपा लिया । 'किन्तु छिपाते वक्त मैंने आँखोंके लिए रास्ता खोल रखा था। मैं देख रही थी, तू क्या करता है। सिर्फ माँकी गोद, दासियों या दासियों के वच्चोंके सिवा वहाँ कोई न था । पिताका आचार्य-कुल अभी जन्मा न था । मैं इस घरमें अपनेको अकेली समझती थी, इसलिए तुझे देखकर मुझे मन ही मन आनन्द हुआ। । “खेलनेके लिए; और तभी है मुझमें छिप गई थी। मैंने तेरे नँगै श्वेत शरीर और गोल गोल चेहरेको देखा । मेरे शिशु-नेत्रोंको वह अच्छा मालूम हुआ। मैंने पास जाकर तेरे कन्धेपर हाथ रखा। तुझे ख़याल है; माँ और मामीने क्या किया है दोन मुस्कराई और बलीं-ब्रह्मा इमारी साध पूरी करे । मुझे उस वक्त साधका अर्थं नहीं मालूम हुआ।