पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/१२६

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प्रवाए १२५ 'क्योंकि मैं राज्य करनेके लिए पैदा किया गया हूँ । "लेकिन कभी तू महाब्राह्मण बननेकी धुनमे था । उस वक्त मुझे पता न था कि मै पंचालपुर ( कन्नौज ) के राजभवनका अधिकारी हैं। 'किन्तु राज-काजसे बाहर जो तु हाथ डाल रहा है, इसकी क्या आवश्यकता है? ‘अर्थात् ब्रह्मासे आगे ब्रह्म तककी उड़ान १ किन्तु लोपा, यह राजकाजसे अलग चीज़ नहीं है। राज्यको अवलम्ब देने होके लिए हमारे पूर्वज राजाने वशिष्ठ और विश्वामित्रको उतना सम्मानित किया था। वह ऋषि, इन्द्र, अग्नि और वरुणके नामपर लोगोंको राजाकी आज्ञा मानने के लिए प्रेरित करते थे। उस समयके राजा जनतामें विश्वाससुपादनके लिए इन देवताओंके नामपर बड़े-बड़े खर्चीले यज्ञ करते थे। आज भी हम यज्ञ करते हैं और ब्राह्मणोंको दान-दक्षिणा देते हैं। यह इसलिए कि जनता देवताओंकी दिव्य शक्तपर विश्वास करे और यह भी समझे कि हम जो यह गन्धशालीका भात, गो-वत्सका मधुर मांससूप, सूक्ष्म वस्त्र और मणि-मुकामय आभूषणका उपयोग करते हैं, वह सब देवताओंकी कृपासे है। तो यह पुराने देवता काफी थे, अब इस नए ब्रह्मकी क्या आवश्यकता थी ?' पीढ़ियोंसे किसीने इन्द्र, वरुण, ब्रह्माको नहीं देखा । अव कितनोंके मनमें सन्देह होने लगा है। ‘तो ब्रह्ममे क्या सन्देह न होगा ११ 'ब्रह्मका स्वरूप मैंने ऐसा बतलाया है कि कोई उसके देखनेकी माँग नहीं पेश करेगा। जो आकाशकी भाँति देखने-सुननैका विषय नहीं; जो यहाँ-वहाँ सर्वत्र है, उसके देखनेका सवाल कैसे उठ सकता है १ सवाल तो उन साकार देवताओंके बारे में उठता था।' जो आकाश-आकाश कहकर साधारण नहीं, बल्कि उद्दालक