पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/१३०

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प्रवाह १२९ पढ़नैको मिला। मैंने राज शसिनकी बारीकियों में घुसनेके बाद देखा कि ब्राह्मणोंकी बनाई पुरानी नाव आजके लिए अदृढ़ है। | इसीलिए तूने दृढ़ नाव बनाई है। 'सत्य या असत्यसे मुझे मतलब नहीं, मेरा मतलब है उसके कार्योंपयोगी होनेसे । लोपा, संसारमे लौटकर जन्मनैकी बात आज नई मालूम होती है और तुझे उसके भीतर छिपा हुआ स्वार्थ भी मालूम है; किन्तु मेरे ब्राह्मण चेले अभीसे उसे ले उड़े हैं। पितरों और देवताओंके रास्ते (पितृ-थान, देव-यान) को समझनेके लिए अभी ही लोग बारहबारह साल गाय चरानेको तैयार हैं । लोपा, मैं और तू यहीं रहेंगे; किन्तु वह समय आयगा, जब कि सारी दरिद्र प्रजा इस पुनरागमनके भरोसे सारे जीवनकी कुटुता, कष्ट और अन्यायको बर्दाश्त करनेके लिए तैयार हो जायगी । स्वर्ग और नरकको समझानेके लिए यह कैसा सीधा उपाय निकाला, लोपा "लेकिन यह अपने पेटके लिए सैकड़ों पीढ़ियोंको भाड़म झोंकना 'वशिष्ठ और विश्वामित्रने भी पेटके लिए ही वेद रचे, उतरपचाल ( कद्देलखण्ड ) के राजा दिवोदासके कुछ शबरदुगकी विजयपर कविता-पर-कविता बनाई । पेटका प्रवन्ध करना बुरा नहीं है, और जब हम अपने पेटक्के साथ इज़ार वर्षोंके लिए अपने बेटे-पोतों, भाई-बन्धुओंके पेटका भी प्रबन्ध& कर डालते हैं, तो हम शाश्वत यशके भागी होते हैं। प्रवाहण वह काम कर रहा है, जिसे पूर्वज ऋषि भी नहीं कर पाए-जिसे धर्मकी रोटी खानेवाले ब्राण भी नहीं कर सके ।” "तु बड़ा निष्ठुर हैं, प्रवाहण !

  • त्वं तदुक्थमिन्द्र वर्हणाकः प्रयच्छता सहसा शुर-बुधिं । अव गिरेदसि शंबर हुन् प्रावी दिवोदास चिन्नाभिस्ती ।

-ऋग्वेद ६।२६।२५