पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/१३३

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१३३ बोलासे गगा अच्छी नीयतसे नहीं-मैरे प्रवाहणने छोड़ी थी, और वह वनकी आग बन सारे कुरु-मंचालको जलाकर अब विदेह तक पहुंच रही हैं। 'बुआ, तेरी बातको सचाईको अब मैं कुछ-कुछ अनुभव करने लगी हूँ । वस्तुतः यह भोग-अर्जनका एक बड़ा रास्ता है। विदेहमें याज्ञवल्क्यको लाखोंकी सम्पत्ति मिली और दूसरे ब्राह्मणोंको भी काफी धन मिला ।। ‘यह यज्ञसे भी ज़्यादी नर्फका व्यापार है, बेटी ! मेरा पति इसे राजाओं और ब्राह्मणोंके लिए भोग-प्राप्तिकी दृढ़ नौका कहा करता था। तो याज्ञवल्क्य जनककी परिषद् विजयी रहा। और तु कुछ बोली या नहीं है। 'बोलना न होता, तो इतनी दूर तक गंगाभे नाव दौड़ानेकी क्या ज़रूरत थी १ । ‘नावमे चोर-डाकू तो नहीं लगे ?? नहीं, बुआ ! व्यापारियोंके बड़े-बड़े सार्थों (कारवाँ) में भटका प्रबन्ध रहता है। हम ब्रह्मवादी इतने मूर्ख नहीं हैं कि अकेले-दुकेले अपने प्राणोंको संकटमे डालते फिरे ।। और याज्ञवल्क्यने सबको परास्त कर दिया है। *उसे परास्त करना ही ने कहना चाहिए ! सो क्यो । क्योंकि प्रश्नकर्ता याज्ञवल्क्यका उत्तर सुन चुप रह गए हैं। तु भी ?' 'मैं भी; किन्तु मुझे उसनै वादसे नहीं, बकवादसे चुप कर दिया। 'बकवादसे ? 'हाँ, मै ब्रसके बारे में प्रश्न कर रही थी, और याज्ञवल्क्यको इतना घेर लिया था कि उसको निकलने का रास्ता न था। इसी वक्त थानवल्क्यने ऐसी बात कही, जिसके सुननेकी मुझे आशा न थी । । 'क्या बैटी ।