पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/१३५

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वोल्गासे गंगा बचनेकी आशा न थी, तो भी वह उस बीस वर्षकी सुन्दरीसे प्रेम करता रहा ।। 'गायको दानकर विदेहराजकी दी हुई सुन्दर दासियोंको याज्ञवल्क्य अपने साथ लाया है बुआ ! मैंने अभी कहा न कि वह प्रवाहणका पक्का चैला है। देखा न उसका ब्रह्मवाद ? और यह तो तूने दूरसे देखा । यदि कहीं तुकै नज़दीकसे देखनेका मौका मिलता, तो देखती बेटी है । तो जुश्रा, तू सचमुच समझती है कि यदि मैं आगे प्रश्न करती, तो मेरा सिर गिर जाता है । 'निस्सन्देह; किन्तु याज्ञवल्क्यकै अझ-तेजसे नहीं, बेटी । दुनियामें कितनोंके सिर चुपचाप गिरा दिए जाते हैं । 'मैरा सिर चकराता है, बुा ।। 'आज १ और मेरा सिर तबसे चकराता है, जबसे मैने होश सँभाला। सारा ढोंग, पूरी वंचना ! प्रजाकी मशक्कतकी कमाईको मुफ्त में खानेका तरीका है यह राजवाद, ब्राह्मणवाद, युज्ञवाद। प्रजाको कोई इस जालसे तब तक नहीं बचा सकता, जब तक कि वह खुद सचेत न हो, और उसे सचेत होने देना इन स्वार्थियोंको पसन्द नहीं है ।। 'क्या मानव-हृदय में इस वचनासे घृणा करनेकी प्रेरणा नहीं देगा । “दैगा बेटी, और मुझे एकमात्र उसीकी आशा है ।*

  • आजले १०८ पीढ़ी पहलेको यह कहानी है, जब किं ऊपरी . अन्तर्वेदमें उपनिषद्के अज्ञानकी रचना प्रारम्भ हुई थी। उस वक्त तक इयान और असली लोहा भारतमें प्रचलित हो चुका था।