पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/१४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
१३९
बधुल मल्ल


था। दोनों टुकड़ियोंके मिलनेसे पहिले ही बाकी गवय भी खड़े हो नथुनोंको फुलाते; कानोंको आगे टेढ़ा करते उसी एक दिशाकी ओर अस्थिर शरीरसे देखने लगे। क्षण भरके भीतर ही जान पड़ा, उन्हें खतरा मालूम हो गया, और नील गवयके पीछे वह हवा बहनेकी दिशाकी ओर दौड़ पड़े। अभी उन्होंने खतरेको आँखों से देखा न था, इसलिये बीच बीचमें खड़े हो पीछेकी ओर देखते थे। छिपे हुये शिकारियों के पास आकर एक बार फिर वह मुड़कर देखने लगे, इसी वक्त कई धनुषों के ज्याकी टकार हुई। नील गवयके कलेजेको ताककर बंधुलने अपना अचूक निशाना लगाया। उसीको मल्लिका और दूसरे कितनोंने भी लक्ष्य बनाया, किन्तु यदि बंधुलका तीर चूक गया होता, तो वह हाथ न आता, यह निश्चित था। नील गवय उसी जगह गिर गया। यूथके दूसरे पशु तितर-बितर हो भाग निकले। बधुलने पहुँचकर देखा, गवय दम तोड़ रहा है। दो गवयोंके खूनकी बूंदोंका अनुसरण करते हुये शिकारियोंने एक कोसपर जा एकको धरती पर गिरा पाया। इस सफलताके साथ आजके बन-भोजमें बहुत आनन्द रहा।

कुछ लोग लकड़ियों की बड़ी निर्धूम आग तैयार करने लगे। मल्लियोंने पतीले तैयार किये। कुछ पुरुषोंने गवयके चमड़ेको उतार मासखंडोंको काटना शुरू किया। सबसे पहिले आगमें भुनी कलेजी तथा सुरा-चषक लोगों के सामने आये—मांस-खड काटनेमें बंधुलके दोनों हाथ लगे हुये थे, इसलिये मल्लिकाने अपने हाथ से मुँहम भुना टुकड़ा और सुरा-चषक दिया।

मांस पककर तैयार नहीं हो पाया था, जब कि सध्या हो गई। लकड़ीके दहकते अग्नि-स्कधोंकी लाल रोशनी काफी थी, उसीमें मल्लोंका गान-नृत्य शुरू हुआ। मल्लिका–कुसीनाराकी सुदरतम तरुणी—ने शिकारी वेशमे अपने नृत्य कौशलको दिखलानेमे कमाल किया। बुधुलके साथी इस अखिल जम्बू द्वीपके मूल्य के नारी-रत्रका अधिकारी होनेके लिये, उसके भाग्यकी सराहनाकर रहे थे।