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बंधुल मल्ल

"ऐसा धोखा ! यह तो उसकी भारी नीचता है, जिसने ऐसा किया।"
"किसने किया, इसे हम नहीं जान सकते, रोज पर मुझे बिल्कुल गुस्सा नहीं है, आखिर वह उचित कह रहा था और उसकी सम्मतिसे गणके बहुसंख्यक सदस्य सहमत थे। किन्तु, मुझे क्षोभ और गुस्सा इस पर है कि कुसीनारामें मुझसे स्नेह रखने वालोंका इतना अभाव है।"
"तो बधुल मल्ल कुसीनारासे नाराज़ हो रहा है ?"
"कुसीनारा मेरी मा है, जिसने पाल-पोसकर मुझे बड़ा किया; किन्तु अब मै कुसीनारामें नहीं रहूँगा।"
“कुसीनाराको छोड़ जाना चाहता है ?"
"क्योंकि कुसीनाराको बंधुल मल्लकी ज़रूरत नहीं है।"
"तो कहाँ चलेगा ?"
“मल्लिका तू मेरा साथ देगी ।"– विकसित वदन हो बंधुलने कहा।
"छायाकी भाँति, मेरे बंधुल ।" मल्लिकाने बंधुलकी लाल आँखोंको चूम लिया और तुरन्त उनकी रुक्षता जाती रही।
"मल्लिका! अपने हाथोंको दे" फिर मल्लिकाके हाथोंको अपने हाथोंमें लेकर बंधुलने कहा— यह तेरे हाथ मेरे लिये शक्तिके स्रोत हैं, इन्हें पाकर बंधुल कहीं भी निर्भय विचर सकता है।"
"तो प्रिय ! कहाँ चलनेको तैकर रहा है और कब ?"
"बिना ज़रा भी देर किये, क्योंकि खुटोंकी कीलोंका पता गणपतिको लगने ही वाला है, उसके बाद वह फिरसे परीक्षा दिन निश्चित करेंगे, हमें लोगोंके आग्रहसे पहिले चल देना चाहिये।”
"अन्यायको परिमार्जन क्यों नहीं होने देता ?"
"कुसीनाराने मेरे बारे में अपनी सम्मति दे दी है, मल्लिके! मेरा यहाँ काम नहीं है, कम-से-कम इस वक्त। कुसीनाराको जब बंधुलकी जरूरत होगी, उस वक्त वह यहाँ आ मौजूद होगा।"