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वोल्गासे गंगा

"उसी रातको ले चलने लायक चीज़ोको ले मल्लिका और बंधुलने कुसीनाराको छोड़ दिया, और दूसरे दिन अचिरवती ( रावती ) के तट पर अवस्थित ब्राह्मणोंके ग्राम मल्लग्राम ( मलाव, गोरखपुर ) में पहुँच गये। मल्लोंके जनपद मल्लग्रामके सांकृत्य अपनी युद्ध वीरताके लिये ख्याति रखते थे। वहाँ बंधुलके मित्र भी थे, किन्तु बंधुल मित्रोंकी मुलाकातके लिये नहीं गया था- वह गया था वहाँसे नाव द्वारा श्रावस्ती ( सहेट-महेट) जानेके लिये। मल्लग्राममें श्रेष्ठी सुदत्तके आदमी रहते थे, और उनके द्वारा नावोंका पाना आसान था। साकृत्य ब्राह्मणोंने अपने कुलाचारके अनुसार अपने द्वार पर एक मोठा सुअरका बच्चा काटा और ब्राह्मणोने अपने हाथसे पकाकर वधुल मल्ल तथा मल्लिकाको उसी शूकर मार्दवसे सत्तृप्त किया।

( ३ )

श्रावस्ती राजधानीमे कोसल राज प्रसेनजित् ने अपने सहपाठी मित्र बंधुल मल्लका बड़े ज़ोरोसे स्वागत किया। तक्षशिलामें ही प्रसेनजित्ने इच्छा प्रकटकी थी कि मेरे राजा होने पर तुझे मेरा सेनापति बनना होगा। राजा हो जाने पर भी कई बार वह इस बारे में लिख चुका था, किन्तु कोसल-काशी जैसे अपने समयके सबसे समृद्ध और विशाल राज्यका सेनापति होनेकी जगह, बंधुल अपनी कुसीनाराके एक मामूली गणका उप-सेनापति रहना ज्यादा पसन्द करता था। किन्तु अब कुसीनाराने उसे ठुकरा दिया था, इसलिये प्रसेनजित्के प्रस्ताव करनेपर उसने शर्त रखी—
"मैं स्वीकार करूगा, मित्र । तेरी बातको; किन्तु, उसके साथ कुछ शर्त है।”
"खुशी से कह, मित्र बधुल!"
"मै मल्ल-पुत्र हूँ।”
"हाँ, मैं जानता हूँ, और मल्लोंके विरुद्ध जानेकी मैं तुझे कभी आज्ञा नहीं दूँगा।"