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बंधुल मल्ल


सबसे बड़ा नगर था। प्रसेनजितके राज्यमें श्रावस्तीके अतिरिक्त साकेत (अयोध्या) और वाराणसी (बनारस) दो और महा नगर थे। श्रावस्तीके सुदत्त (अनाथ-पिंडक) और मृगार, साकेतके अर्जुन जैसे कितने ही करोड़पति सेठ काशी कोसलके सम्मिलित राज्यमें बसते थे, जिनके सार्थ (कारवा) जम्बू द्वीप ही में नहीं, बल्कि ताम्रलिप्तसे होकर पूर्व समुद्र ( बंगाल की खाड़ी) और भरुकच्छ ( भडौंच ) तथा सुप्पारक (सोपारा) से होकर समुद्र ( अरब सागर ) द्वारा दूर दूरके द्वीप तक जाते थे। ब्राह्मण सामन्तों ( महाशालों ) तथा क्षत्रिय सामन्तोंके बराबर तो उनका स्थान नहीं था, तो भी यह लोग समाजसे बहुत ऊंचा स्थान रखते थे, और धनमें तो उनके सामने सामन्त तुच्छ थे। सुदत्तने जेत राजकुमारके उद्यान जेतवनको कार्षापणों ( सिक्कों ) को बिछाकर खरीदा, और गौतम बुद्धके लिये वहाँ जेतवन बिहार बनवाया था। मृगारके लड़के पुण्ड्रबर्धनके ब्याहमें राजा प्रसेनजित् स्वयं सदलबल साकेत गया था, और कन्या-पिता अर्जुन श्रेष्ठीका मेहमान रहा। अर्जुनकी पुत्री तथा मृगारकी पुत्र-बधू विशाखाने अपने हारके दामसे हज़ार कोठरियोंका एक सात तल्ला विशाल बिहार (मठ) बनवाया, जिसका नाम पूर्वाराम मृगार माता प्रसाद पड़ा। देश देशान्तरका धन इन श्रेष्ठियोंके पास दुहकर चला आता था, फिर इनकी अपार सम्पत्तिके बारे में क्या कहना है?

जैवलि, उद्दालक, याज्ञवल्क्यने यज्ञवादको गौण—द्वितीय— स्थान देते हुये, वास्तविक निस्तारके लिये ब्रह्मवादकी दृढ़ नौकाका निर्माण किया। जनक जैसे राजाओंने बड़े बड़े पुरस्कार रख ब्रह्मसंबंधी शास्त्रार्थी परिषद् बुलानी शुरूकीं; जिनसे वेदसे बाहर भी कल्पना करनेका रास्ता खुला। अब यह वह समय था, जब कि देशमें स्वतंत्र चिन्तनकी एक बाढ़-सी आ गई थी, और विचारक ( तीर्थंकर ) अपने अपने विचारोंको लोगों के सामने साधारण सभाओंमें रखते थे।-कहीं उसका रूप साधारण उपदेश (अपवाद, सुक्त) के रूपमें होता था,