पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/१५०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१४९
बधुल मल्ल


और बातोंको मिलाकर उसकी कड़वाहटको दूर किया था। उनका कहना था-किसी नित्य आत्माके न होने पर भी चेतना-प्रवाह स्वर्ग या नर्क आदि लोकों के भीतर एक शरीर से दूसरे शरीर—एक शरीर-प्रवाहसे दूसरे शरीर-प्रवाहमें बदलता रहता है। इस विचारमें प्रवाहण राजाके आविष्कृत हथियार—पुनर्जन्मकी पूरी गुंजाइश हो जाती थी। यदि गौतम कोरे जड़वादका प्रचार करते, तो निश्चय ही श्रावस्ती, साकेत, कौशाम्बी, राजगृह भाद्रिकाके श्रेष्ठिराज न अपनी थैलियाँ खोलते, और न ब्राह्मण-क्षत्रिय-सामन्त, तथा राजा उनके चरणोंमें सिर नवानेके लिये होड़ लगाते।

श्रावस्तीके ऊँचे वर्गकी स्त्रियोंकी गौतम बुद्धके मतमें बड़ी आस्था थी। प्रसेनजितकी पटरानी मल्लिका देवी बुद्ध धर्ममें बहुत अनुरक्त थी, उसके नगरके सेठकी पुत्रवधू तथा उसकी सखी विशाखाने अपने श्रद्धाके रूपमें पूर्वाराम जैसा एक महा-बिहार ही बना कर बुद्धको दान दिया। बंधुल मल्ल सेनापतिकी पत्नी मल्लिका, मल्लिका पटरानीकी बड़ी प्रिय सखी थी, उसीसे प्रेरित हो वह भी बुद्धके उपदेशोंमें जाने लगी, तथा कुछ समय बाद बुद्धोपासिका होके रही।

मल्लिका का घर अब बहुत समृद्ध था। कौसल जैसे महान् राज्यके सेनापतिको घर समृद्ध होना ही चाहिये। मल्लिकाके दस वीर पुत्र हुये थे, जो राज-सेनाके ऊँचे पदों पर थे। बंधुल मल्लने एक युग तक राजा के ऊपर अपना प्रभाव रखा। इसी बीच उसके बहुतसे शत्रु हो गये। दूसरे जनपदके आदमीको इतने ऊँचे पदपर देखना भी वह नहीं पसन्द करते थे। ईर्ष्यालुओंने राजाके पास चुगली करनी शुरू की। राजा कुछ मन्दबुद्धि था भी, "बंधुल मल्ल तो महाराजको निर्वृद्धि कहता है” कह कर उसे भड़काया गया। अन्तमें यहाँ तक बतलाया गया कि सेनापति राज्यको छीनना चाहता है। प्रसेनजितको बात ठीक जँच गई। वह उसके और अपने शत्रुओंके हाथमें खेलने लगा। बंधुल मल्लको चिन्तित देख एक दिन मल्लिकाने कहा—