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वोल्गासे गंगा

"प्रिय ! । क्यों इतना चिन्तित है ?"
"क्योंकि राजा मुझपर सन्देह करने लगा है।"
"तो क्यों न सेनापतिका स्थान छोड़ कुसीनार चले चलें। वहाँ अपनी जीविकाके लिये हमारे पास काफ़ी कर्मान्त (कामत, खेती) है।
"इसका अर्थ है राजाको उसके शत्रुओंके हाथमें छोड़ देना। देखती नहीं मल्लिका! मगधराज अजातशत्र कई बार काशी पर आक्रमण कर चुका है। एक बार हमने उसे बन्दी बना लिया, महाराजने उदारता दिखलाते हुये राजपुत्री वज्रासे व्याहकर उसे छोड़ दिया। किन्तु अजातशत्रु सारे जम्बूद्वीपका चक्रवर्ती बनना चाहता है मल्लिका ! वह इस ब्याहसे चुप होने वाला नहीं है। उसके गुप्तचर राजधानी भरे हुये हैं। हमारे दूसरे पड़ोसी अवन्तिराजके दामाद वत्सराज उदयनकी नीयत भी ठीक नही है, वह भी सीमान्त पर तैयारी कर रहा है। ऐसी अवस्थामें श्रावस्तीको छोड़ भागना भारी कायरता होगी मल्लिका !
"और मित्र-द्रोह भी।"
"मुझे अपनी चिन्ता नहीं है मल्लिका ! युद्धोंमें कितनी बार मैं मृत्युके मुख में जाकर बाहर निकला हूँ, इसलिये किसी वक्त मृत्यु यदि अपने जबडेके भीतर बन्दकर ले, तो कोई बड़ी बात नहीं।"

मालीकी लड़की मल्लिका— जो कि एक साधारण कमकरकी लड़की हो अपने गुणोंसे प्रसेनजितकी पटरानी बनी—अब नहीं थी, नहीं तो हो सकता था राजाके कानोंको लोग इतना ख़राब न कर पाते। एक दिन राजाने सीमान्तके विद्रोहकी बात कहकर एक जगह बंधुल मल्लके पुत्रोंको भेज दिया। जब वह सफल हो लौट रहे थे, तो धोखेसे उन्हीं के ख़िलाफ़ बंधुल मल्लको भेजा, इस प्रकार बाप और उसके दसों लड़के एक ही जगह काम आये। जिस वक्त इस घटनाकी चिट्ठी मल्लिकाके पास आई, उस वक्त वह बुद्ध और उनके भिक्षु संघको भोजन कराने जा रही थी, उसकी दसों तरुण बहुओंने बड़े प्रेमसे कई तरहके भोजन तैयार किये थे। मल्लिकाने चिट्ठी पढ़ी, उसके कलेजेमें