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बंधुल मल्ल


कहकर प्रसेनजितको दे दिया। इसी लड़की वार्षभ क्षत्रियाका लड़का है यह विदूडभ राजकुमार !” "लेकिन, अब तो वह भी हमारे खूनका वैसा ही प्यासा होगा, जैसे शाक्य।"

बाजे बजने लगे, शाक्योंने कोसल राजकुमारकी अगवानीकर संस्थागारमें बड़े धूमधामसे उसका स्वागत किया, यद्यपि भीतरसे दासीपुत्र समझ सभी उसके ऊपर घृणाकर रहे थे।

विदूडभ अपने 'मातुलकुलका' स्वागत ले, नाना महीनामका आशीर्वाद पा खुशी-खुशी कपिलवस्तुसे विदा हुआ। दासी पुत्रके पैरसे संस्थागार अपवित्र हो गया था इसलिये उसकी शुद्धि होनी जरूरी थी, और कितने ही दास-दासी आसनोंको दूधसे धोकर शुद्ध करनेमें लगे थे। एक मुहचली दासी धोते वक्त दासी-पुत्र विदूडभको दस हज़ार गाली देती जा रही थी। विदूडभका एक सैनिक अपने भालेको संस्थागारमें भूल गया था। लौटकर भाला लेते वक्त उसने दासीकी गालीको ध्यानसे सुना। धीरे धीरे सारी बातका पता विदूडभको लगा। उसने संकल्प किया कि कपिलवस्तुको निःशाक्य करूंगा और आगे चलकर उसने यहकर दिखलाया। उसके क्रोधका दूसरा लक्ष्य था प्रसेनजित्, जिसने उसे दासीमे पैदा किया।

दीर्घकारायण अपने मामा और ममेरे भाइयोंके ख़ूनको भूल नहीं सकता था। उधर बुढ़ापे में अपनी सारी भूलोंका पश्चात्ताप करते प्रसेनजित् अधिक से अधिक विश्वास और मृदुता दिखलाना चाहता था। एक दिन मध्यान्ह भोजनके बाद उसे बुद्धका ख्याल आया। कुछ ही योजनों पर शाक्योंके किसी गाव में ठहरे सुन, कारायण, और कुछ सैनिकोंको लेकर वह चल पड़ा। उसने बुद्धके वास-गृहमें जाते वक्त मुकुट, खङ्ग आदि राजचिन्हको कारायणके हाथमें दे दिया। कारायण विदूडभसे मिला हुआ था, उसने एक रानीको छोड़, विदूडभको राजा घोषितकर श्रावस्तीका रास्ता लिया।