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नागदत्त


लिच्छवि मगध-शिकारीके जबर्दस्त कुत्ते-इससे बढ़कर कुछ नहीं। वैशालीको आकर देखो, उजाड़ हो रही है, पिछले डेढ़ सौ वर्षों में उसकी जनसंख्या तिहाई भी नहीं रह गई। शताब्दियोंसे अर्जित स्वतंत्रता, स्वाभिमानके भाव अब मगधराजके लड़ाके सैनिक बनानेमें काम आ रहे हैं। एक बार जहाँ, किसी बड़े राज्यके हाथमें अपनेको दे दिया, तो फिर उसके हाथसे छूटना मुश्किल है।"

"मित्र नागदत्त ! मैं भी किसी वक्त तेरी ही तरहसे विचारता था, किन्तु मैं समझता हूँ, अब छोटे छोटे गणोंका युग बीत गया, और बड़ा गण या संघ कायम करना सपना मात्र है, इसीलिये मैं समयकी आवश्यकताको उचित कहता हूँ। किन्तु, यह बतला अब क्या पश्चिमकी तैयारी है?"

"हाँ, पहिले पार्शवोंके देशको, फिर हो सका तो देखना चाहता हैं, यवनों (यूनानियों) को भी। हमारी तरह उनके भी गण हैं किन्तु देखना है, कैसे उन्होंने महान् दारयोश तथा उसके वंशजोंको अपने मनसूबेमें सफल नहीं होने दिया, इसे मैं देखना चाहता हूँ।”

"और मैं भी चल रहा हूँ मित्र! प्राचीको, देखें मगधमें सारे जम्बूद्वीपको एक करनेकी शक्ति है या नहीं। चलो हम लोग पढ़ाई समाप्तकर, धन-अर्जन, परिवार-पोषणकी जगह यही काम करें। लेकिन मित्र! तूने जो साथ ही साथ वैद्यकी विद्या पढ़ी, अच्छा किया; मैं पछताता हूँ, यात्रा करनेवालोंके लिये यह बड़े लाभकी विद्या है।"

"किन्तु, तू उससे भी लाभकी विद्या ज्योतिष और सामुद्रिक तंत्र-मत्र जानता है।"

"तू जानता है मित्र! यह झूठी विद्याये हैं।”

"लेकिन, विष्णुगुप्त चाणक्यको झूठी सच्ची विद्याओंसे क्या वास्ता? उसके लिये तो जो आवश्यक है, वह उचित है।"

बचपनसे साथ खेलते साथ पढ़ते तक्षशिलाके नागदत्त काष्य और विष्णुगुप्त चाणक्यके विद्यार्थी जीवनकी यह अन्तिम भेंट थी। एकसे