पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/१६२

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नागदत्त वह एक बड़ेसे खर्बजे { सर्दै )को काटकर खा रहा था, उसके आस पास उसीकी तरह भिखमंगों जैसे मैसमें कितने ही और ईरानी बैठे थे, जिनके सामने भी वैसे ही खर्बजे रखे हुए थे। | राजकर्मचारीको देखते ही, भिखमंगै भयभीत हो इधर उधर भाग खड़े हुए । एक आदमीने वहाँ खड़े आदमीकी और इशारा करके कहा स्वामी ! यह हिन्दू वैद्य है। | वैद्यकै मलिन कपड़ोंकी ओर देखकर राजकर्मचारीको मुंह पहिले विगहा गया । फिर उसने उसके चेहरे की ओर देखा । वह उन कपड़ौके लायक ने था, वहाँ भय, दीनताको नाम न था। राजकर्मचारीपर उन नीली आँखोंसे निकलती किरणोंने कुछ प्रभाव डाला, उसके ललाटकी सिकुड़न चली गई, और कुछ शिष्ट-स्वरमे उसने कहा "तुम वैद्य हो ।' हाँ ! “कहाँकै १॥ तक्षशिलाका । तक्षशिलाका नाम सुनकर राजकर्मचारी और नग्न हो गया, और बोला “हमारे क्षत्रप-बहु-सोग्दके क्षत्रप की स्त्री शाहंशाहकी बहिन बीमार हैं, क्या तुम उनकी चिकित्सा कर सकते हो १५ "क्यों नहीं, मैं वैद्य तो हूँ ।” 'किन्छ, यह तुम्हारे कपड़े ! "कपड़े नहीं चिकित्सा करेंगे, मैं चिकित्सा करूँगा ।" **किन्तु, यह ज्यादा मैले हैं।" आज इन्हें बदलने ही वाला था । एक क्षण के लिये ठहरेंकह वैद्यने एक धुले ऊनी चोगे—जो पहिलेसै थोड़ा ही अधिक साफ था--को पहिना, और हाथमें दवाओंकी पोटलियोंसे भरी एक चमड़े की थैली ले राजकर्मचारीके साथ चल पड़ा।