पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/१६९

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१६८ वोगासै गंगा लिया। जब सोफियाकी इंटी-टूटी फारसीको समझना मुश्किल हो रहा था, उस वक्त भी नागदत्तों इतना पता लग गया था, कि उन चमकीले नेत्रों के भीतर तीक्ष्ण प्रतिभा छिपी हुई है। जब वह उसकी हो गई–हाँ, दासीके तौर फ्र, तो नागदत्तने उसे कभी दासीके तौरपर स्वीकार नहीं किया और धीरे धीरे भाषाको परिचय भी और अधिक बढ़ने लगा । नागदत्तने स्वयं यवनानी (यूनानी ) लिपि सीखी, और सोफिया उसे बड़े परिश्रमसे एथेन्स की भाषा सिखाने लगी। साल बीततै बीतते वह उसमें निपुण हो गया। एक दिन सोफियाने तरुण वैद्यके प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए कहा भाग्य था संयोग भी कैसी चीज़ है, मुझे कभी आशा नहीं हुई थी, कि मैं तुम्हारे जैसे कोमल स्वभावके स्वामीकी दासी बनूंगी।" | "नहीं, सोफिया ! तुम यदि क्षेत्रपानीके साथ रइतीं तो तुम्हें शायद ज्यादा आराम होता। लेकिन सोफी ! मुझे स्वामी न कहो। दासप्रथाका नाम सुनकर मुझे ज्वर आता है। किन्तु, मै तुम्हारी दासी हूँ।” “तुम दासी नहीं हो, मैंने क्षत्रप-दम्पतीको सूचित कर दिया है, कि सोफियाको मैंने दासतासे मुक्त कर दिया । "तो मैं अब दासी नही हूँ ! "नहीं, अब तुम मेरी ही तरह स्वतंत्र हो, और जहाँ चाहो, मैं कोशिश करूंगा, तुम्हें वहाँ पहुँचानेकी ।” ,

    • किन्तु, यदि मैं तुम्हारे पास और रहना चाहूंगी, तो बाहर तौ नहीं करोगे ।

“यह बिल्कुल तुम्हारी इच्छा पर है। दासता मनुष्यको कितना दबा देती है १ पिताके घरमें मैंने अपने वासको देखा था, वह हँसते थे, आमोद-प्रमोद करते थे, मैंने कभी नहीं समझा था कि उस हँसीके भीतर कितनी व्यथा छिपी हुई है। जब मै स्वयं दासी हुई, तब मुझे अनुभव हुआ, कि दासता कैसा नर्क है ।'