पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/१७

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बोल्गा से गंगा समर्थ होगी। यह परिवार-वृद्धि तभी रुकती, यदि अनेक वीर्य के एक क्षेत्र होनेकी भाँति अनेक रजका भी एक बीर्य-क्षेत्र होता ।। । परिवारको स्वामिनी निशा अपनी पुत्री लेखाको शिकारमे बहुत सफल देखती हैं। वह पहाड़ियोंपर हरिनोंकी भांति चढ़ जाती है । उस दिन एक चट्टानपर, बहुत ऊँचे ऐसी जगह एक बड़ा मधुछत्र दिखाई पड़ा, जहाँ रीछ ( मध्वद) भी उसे खा नहीं सकता था। लेकिन, लेखा ने लट्ठे पर लट्ठे बाँधे फिर छिपकली की भाँति सरकते हुए रातको उसने मशालसे छत्तकी विषैली बड़ी-बड़ी मधु-मक्खियों को जलाकर उसमे छेदकर दिया । नीचेकै चमड़ेके कुप्पैम तीस सैर से कम मधु नहीं गिरा होगा। लेखाके इस साइसकी तारीफ़ सारा निशा-परिवारही नहीं पडोसी-परिवार भी कर रहा था। किन्तु निशा उससे संतुष्ट नहीं थी । वह देख रही थी, तरुण निशा-पुत्र जितना लेखा के इशारे पर नाचने के लिए तैयार है, उतना उसकी प्रार्थनाको सुनना नहीं चाहते, यद्यपि वे अभी निशा क्री खुल्लम-खुल्ला अवैज्ञा करनेका साहस नही रखते । । । निशा कितने ही दिनोंसे कोई रास्ता सोच रही थी। कभी उसे ख़याल होती लेखाको सोतेमें गला दबाकर मारदे, किन्तु वह यह भी जानती थी कि लेखा उससे अधिक बलिष्ठ है, वह अकेली उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती । यदि वह दूसरेकी सहायता लेना चाहे, तो क्या कोई उसकी सहायता करेगा ? परिवारके सभी पुरुष लेखाके प्रणय-पात्र कृपा पात्र बनना चाहते थे। निशाको पुत्रियाँ भी माका हाथ बंटानेके लिए तैयार न थीं, वे लेखासे डरती थीं । वे जानती थीं कि असफल होनेपर लेखा बुरी तरहसे उनके प्राण लेगी । निशा एकान्तम बैठी कुछ सोच रही थी। एकाएक उसका चेहरा खिल उठा-उसे लेखाको परास्त करनेकी कोई युक्ति सूझ पड़ी। पहरभर दिन चढ़ आया था। सारे परिवार अपने-अपने चमड़े के तबुत्रोंके पीछे नगे लेटे या बैठे धूप ले रहे थे, किन्तु निशा तवू