पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/१७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

नागदत्त १७१ त्रताका इतना ख्याल होता है, कि वह संघको वह स्थान देने के लिये तैयार नहीं होते !" "तो क्या मै गलत साबित होगा और विष्णुगुप्त ही सही । "क्या विष्णुगुप्त संघमें सफलता नहीं देखता ।" “हाँ, वह कहता है, इसारा शत्रु जितना मजबूत है, उसका मुकाबिला गणोंके सघसे नहीं हो सकता, अनेक गणोंकी सीमा मिटाकर यदि एक महान् गण बनाया जा सके, तो शायद सभव हौ, किन्तु गण इसे नहीं मानेंगे । शायद, नाग ! तुम्हारा मित्र सत्य कहता है, किन्तु, हमने अन्त तक एथेन्सकी स्वतत्रताको खुशीसे देनेका ख्याल नहीं आने दिया । । "तो सोफी ! गण होते हुए एथेन्सने इस दासताको क्यों स्वीकार किया है। | "अपने पतनको जल्दी बुलाने के लिए । धनिकोंके लोभने दासताको जारी किया, और धीरे-धीरे दास स्वामियोंसे भी संख्यामें बढ गए ।” “तुम्हें यहाँ पार्शवोंमें सबसे बुरी बातें क्या मालूम हुई है। दासता, जो कि हमारे यहाँ भी थी। फिर शाहशाहों और धनिकों का रनिवास । “तुम्हारे यहाँ ऐसा नहीं होता है। इमारे यहाँ मकदूनियाका राजा फिलिप भी एकसे अधिक व्याह नहीं कर सकता । यहाँ तो छोटे-छोटे राजकर्मचारी तक कई-कई शादियाँ करते हैं।" “हमारे यहाँ कभी-कभी एक से अधिक व्याह देखे जाते हैं, यद्यपि उनकी संख्या कम है, किन्तु, मैं अनुभव करता था कि यह स्त्रियोंकी दासताकी निशानी है। एथेन्सनै यदि दासता रखी, तो तक्षशिलानै अनेक के साथ विवाहको, चाहे किसी अवस्थामें जायज़ रखा हो, ज्ञारी रखकर उसे कायम रखा। और धनका थोड़ेही घरों में जमा होना ।”