पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/१७४

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नागदत्त १७३ "मैंने उसके लिए उपाय सोच रखा है, किन्तु, उसमें तुम्हारी सम्मति की भी जरूरत है। क्या । क्षत्रप, छत्रपानी और शाहंशाहसे अपने बारे में पत्र ले लँगा, कि यह शाहंशाहसे सम्मानित हिन्दू वैद्य है । तो तुमको कोई नहीं छेड़ेगा ।। और तुम दुनियाके दिखलानेके लिए वैद्यकी स्त्री यदि बनना चाहो, तो पत्रमें तुम्हारा नाम भी लिखवा दूंगा। सोफियाकी आँखोंमें आँसू छलछल उतर आए थे, उसने नगदत्तके हाथको अपने हार्योंमें लेकर कहा "नाग ! तुम कितने उदार हो, और यही तुम उसे जानने की कोशिशभी नहीं करना चाहते। तुम कितने सुंदर हो, किन्तु, कभी तुमने यह अपनी ओर झकिती पुष्पराग और नीलमकी आँखों को नहीं देखा । नाग ! रोशनाने कितनीही बार मेरे सामने तुम्हारे लिए प्रेम प्रकट किया था। उसका एक कोई मरियलसा भाई है, माँ-बाप चाहते हैं, उसीसे ब्याह कर देना, किन्तु, वह तुमको चाहती है।

    • अच्छा हुआ, जो मैंने नहीं जाना, नहीं तो इन्कार ही करना पड़ता | सोफिया | मैं इन प्रासादपोषिताओंके लिये नहीं हैं। मैं शायद किसी के लिये नहीं हैं, क्योंकि मुझसे प्रेम करनेवालीको कभी सुखकी नीद सोनेको नहीं मिलेगी। किन्तु, यदि तुम चाहो, तो शाहंशाहके पत्र में-पत्र भरके लिये—अपनी स्त्री लिखवा लँ। शायद यवनदेशमैं तुम्हारा कोई प्रिय मिल जाय, फिर तुम अपना रास्ता तै करना ।

| वैद्य नागदत्तकी हर जगह आवभगत होती थी, वह हिन्दू वैद्य था, पार्शव शाहशाह दारयोश्का वैद्य रह चुका था, साथ ही चिकित्सा उसका अद्भुत अधिकार था। पशुपुरीमें रहते ही वह यवन भाषा सीख गया था, फिर सोफिया उसकी सहचरी थी। उसने मकदूनिया देखी,