पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/१७६

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  • नागदत्त

देखकर उसकी यह हालत हुई है। किन्तु, बड़ी मुश्किल यह थी, किसमझानेको वहाँ अवसर न था और अन्तमें सोफियाकै इस मर्मान्तक शोकका असर नागदत्त पर भी पड़ा । । जब सोफिया फिर प्रकृतिस्थ हुई तो वह बिल्कुल बदली हुई थी। अपने शरीरको सजानेका उसे कभी ख्याल न होता था, किन्तु अब वह गणतान्त्रिक एथेन्सकी तरुणियोंकी भाति अपने खुले सुवर्ण-केशोंको ताजे फूलोंकी मालाकी मेखलासे बाधती थी। बदन पर यवन सुन्दरियका पैर तक लटकता अनेक चुनावों वाला सुन्दर कंचुक होता और पैरोंमे अनेक बद्धियोंकी चप्पल ! उसके सुन्दर श्वेत ललाट, गुलावी कपोलों, अतिरक्त ओठोंमें तारुण्य, सौन्दर्य और स्वास्थ्यका अद्भुत सम्मिश्रण था । और प्रसन्नता, मुस्कान तो उसके चेहरे, ओठों पर, हर वक्त नाचती रहती थी । नागदत्तको यह देखकर आश्चर्य नहीं, अपार हर्ष हुआ। उसके पूछने पर सोफ़ियाने कहा "प्रिय नाग ! मैने जीवनको अब तक एकमात्र शोक और चिन्ता की वस्तु समझ रखा था, किन्तु, मुझे वह दृष्टि गलत मालूम हो रही है। जीवन पर इस तरहकी एकागी दृष्टि जीवनके मूल्यको कम कर देती है, और उसके कार्य करनेकी क्षमताको भी निर्बल कर देती है। आखिर तुम भी नाग ! तक्षशिलाके भविष्यके लिये कम चिन्ता नही रखते, किन्तु तुम चित्तको शीतल रख उपाय सोचनेमें सारी शक्ति लगाते हो ।' “मुझे बड़ी प्रसन्नता है सोफी । तुम्हें इतना आनन्दित देखकर । "मुझे आनन्द क्यों न होगा, मैंने एथेन्समे लौटकर अपने प्रियको पा लिया । नागदत्तने हर्षोल्लाससे पुलकित हो कहा-यह और भी आनदकी बात है कि तुमने अपने प्रियको इतने दिनों बाद पा लिया । मैं देखती हूँ, नाग ! तुम मनुष्य नहीं हो, देवताओंसे भी ऊपर हो, तुममें ईष्र्या छु तक नहीं गई है ।” ईष्य । ईष्यका यहाँ क्या काम १ मैंने सोफी ! क्या जिम्मा नहीं