पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/१७८

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नागदत्त . मैं सहायता कर हूँ ।” *बड़ी कृपा होगी । उलझी चुदनका सुलझाना आसान था। फिर नागदत्तने नये चप्पलको पहिना । नागदत्तके खिले मुँहकी ओर देखनेका सोफीको साहस नहीं हुआ। उसने उसके हाथको पकड़कर कहा-“पहिले चलो दर्पण में अपनी नई पोशाकको देख तो लो।" तुमने देख लिया सोफ़ी ! यही वहुत है। विनीत मैस होना चाहिये ।

  • हाँ, मै तो समझती हूँ विनीत है, किन्तु एक बार देख लेना बुरा नहीं है ।"

सोफीने नागदत्तको दर्पणके सामने खड़ा कर दिया, वह अपने वस्त्रको देखने लगा। उसी वक्त उसने माला निकाल कर कहा "यह माला मैंने प्रियतमके लिये बनाई है।" "बहुत अच्छी माला है, सोफी ।" “किन्तु, मालूम नहीं उसे कैसी लगेगी।" "क्यों, बहुत अच्छी लगेगी ।" उसके पीले कैश हैं, और यह माला अतिरक्त गुलावकी है। *सुन्दर मालूम होगी ।" "जरा तुम्हारे शिरपर रखकर देख लूं।" "तुम्हारी मर्जी। मेरे भी केश पीले हैं। . इसीलिये तो निश्चय कर लेना चाहती हूँ ।” मालाको शिर पर रख कर सामनेसे देख फिर दर्पणसे मुंह दूसरी ओर घुमानेके लिये कह तो तुम आज मेरे प्रियतमको देखोगे नाग ! अभी, यह देखो ।' नागने मुंह घुमाया, सोफिया की अंगुली दर्पणकी और नागदत्त के प्रतिबिंबकी ओर थी। उसने आनन्दाश्रुपूर्ण नेत्रोंसे कहा-'यह है मेरा प्रियतम ! और फिर दूसरे ही क्षण उसने अपनी भुजाओं में नागदत्तको बाँध उसके होठों पर अपने होठोंको रख दिया । नागदत्त