पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/१८

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निशा के सामने बैठी थी। उसके पास लेखाका तीन वर्षका पुत्र खेल रहा था। निशाके हाथमे दोनेम लाल-लाल स्ट्रावरीकै फल थे। वोल्गाकी धारा पाससे बह रही थी और निशाके सामने सीधे खड़े अरार तक ढालू ज़मीन थी। निशाने एक फल लुढ़काया, लड़को दौड़ा और उसे पकड़कर खा गया। फिर दूसरेको लुढ़काया, उसे थोड़ा और आगे जाने पर वह पकड़ सका । निशाने जल्दी-जल्दी कितने ही फल लुढक दिये, बच्चेने उन्हें पकड़नेके लिए इतनी जल्दीकी कि एक बार उसका पैर अरारसे फिसल गया और वह धमसे वोल्गाकी वेज़ धाराम जा गिरा। निशा वोल्गाकी ओर नज़र दौड़ाये चीख उठी। कुछ दूरपर बैठी लेखाने देखा। पुत्रको न देख वह धारकी और झपटी । उसका पुत्र धारमे अभी नीचे-ऊपर हो रहा था। उसने छलागे मारी और पुत्रको पकड़ लेनेमें सफल हो गई । बहुत पानी पी ज्ञानेसे बच्चा शिथिल हो गया था। वोल्गा का वर्फीला जल शरीरमें काँटे की तरह चुभ रहा था । लेखाको घार काटकर किनारेकी ओर बढना मुश्किल था। उसके एक हाथमें बच्चा था, दूसरे हाथ और पैरोसे वह तैरनेकी कोशिशकर रही थी। उसी वक्त अपने गलेको उसने किसीके मजबूत हाथोम फैसा देखा । लेखाको अब समझने में देर न लगी। वह देरसे निशाकी बदली हुई मनोवृत्तिको देख रही थी। आज निशा अपने राहके इस काँटे-लेखा–को निकालना चाहती हैं। लेखा अब भी निशाको अपना बल दिखला सकती थी ; किन्तु उसके हाथमें बच्चा था ! निशाने लेखाको ज़ोर लगाते देख अपनी छातीको उसके शिरपर रख दिया । लेखा एक बार इब गई। छटपटानेमें उसका बच्चा इाथसे छूट गया । अब भी निशाने उसे वैज्ञाबू कर रक्खा था। एकाएक उसका हाथ निशाके गले में पड़ गया। लेखा वेहोश थी और निशा उसके बोझके साथ तैरनेमें असमर्थ । उसने कुछ कोशिश की, किन्तु वेकार ! दोनों एक साथ वोल्गा की भेंट हुईं परिवारको बलिष्ठ स्त्री रोचना निशा-परिवारको स्वामिनी बनी।