पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/१८६

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प्रभा फर वही तरुण है, जिसने एक मास पहले तैराकीमें विजय प्राप्त करनेसे इन्कार कर दिया था। उसके शरीरपर मसूण ( चिकने) सूक्ष्म हुकूलका कंचुक है। उसके दीर्घ पिंगल-केश सिरके कृपर जुटकी तरह बंधे हुए हैं। उसके हाथमें मुखर वीणा है, जिसपर तरुणकी अंगुलियाँ ऋप्रयास थिरकती मनमाना स्वर निकाल रही हैं। तरुण अर्द्धमुद्रित नेत्रोंके साथ लयमें लीन कुछ गा रहा है-दूसरेके नहीं, अपने ही बनाए गीत । उसने अभी 'वसन्त-कोकिला'का गीत संस्कृतमें समाप्त किया। सस्कृतके बाद प्राकृत गीत गाना जरूरी था, क्योंकि गायक कवि जानती है, उसके श्रोताओं में प्राकृत-प्रेमी ज्यादा हैं। कविने अपनी नवनिर्मितं रचना उर्वशी-वियोग' सुनाई-उर्वशी लुप्त हो गई और पुरूरवा अप्सरा ( पानीमें चलनेवाली.) कहकर उर्वशीको सम्बोधित करते पर्वत, सरिता, सरोवर, वन, गुल्म आदिमें ढढता फिरता है। वह अप्सराका दर्शन नहीं कर पाता; किन्तु उसके शब्द उसे वायुमें सुनाई देते हैं। पुरूरवाके आँसुओंके बारेमे गाते वक्त गायकके नेत्रोंसे आंसू गिरने लगे, और सारी श्रोतृ-मण्डलीने उसका साथ दिया।

संगीत-समाप्तिके बाद लोग एक-एक करके चलने लगे । अश्वघोष जब बाहर निकला, तो कुछ तरुण-तरुणी उसे घेरकर खड़े हो गए। उनमें सूजे आर नयनों के साथ प्रभा भी थी। एक तरुणने आगे बढ़कर कहा-'महाकवि ! | महाकवि ! मैं कवि भी नहीं हूँ, सौम्य ! • • मुझे अपनी श्रद्धा के अनुसार कहने दो, कवि ! साकेतकै हम यवनोंकी एक छोटी-सी नाट्यशाला है।' : • नृत्यके लिए है मुझे भी नृत्यका शौक है ।। -- *, 'नृत्यके लिए ही नहीं, उसमें हम अभिनय भी किया करते हैं । - अभिनय । . हाँ, यवन-रीतिको अभिनय एक विशेष प्रकारका होता है, कवि जिसमें भिन्न-भिन्न काल तथा स्थानके परिचायक बड़े-बड़े चित्रपट रहते