पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/१८८

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प्रभा ७ ‘प्रभालोक' कहते समय कुछ तरुणयनै प्रभाकी ओर देखकर मुस्करा दिया। अश्वघोषने फिर कहा-'मेरे मन में एक विचार आया है। तुमने जैसे यवन नाटकके प्राकृत-रूपान्तरका आज अभिनय किया, मैं समझता हूँ, उसी ढंगके अनुसार हम अपने देशको कथाको ले अच्छे नाटक तैयारकर सकते हैं।' | हमे भी पूरा विश्वास है, यदि कवि, तुम करना चाहो, तो मूल यवन-नाटकसे भी अच्छा नाटक तैयार कर सकते हो । । 'इतना मत कहो, सौभ्य ! यवन नाटककारका मैं शिष्य-भर से छौने लायक हूँ। अच्छा, यदि मैं उर्वशीवियोगपर एक नाटक लिखें । 'हम उसका अभिनय भी करनेके लिए तैयार हैं; लेकिन साथ ही पुरूरवाका पार्ट तुम्हें लेना होगा । | "मुझे उच्च न होगा, और मैं समझता हूँ. योड़ा-सा अभ्यास कर लेनैपर मैं उसे बुरा न करूंगा।' 'हुम चित्रपट भी तैयार कर लेंगे।' 'चित्रपटपर हमें पुरूरवाके देशकै दृश्य अंकित करने होंगे। मैं भी चित्र कुछ खीच लेता हूँ। अवसर मिलनेपर उसमें मैं कुछ मदद करूगा ।' | 'तुम्हारे आदेशके अनुसार दृश्योंका अंकित होना अच्छा होगा। पात्रोंकी वेश-भूषका निर्देश भी, सौम्य, तुम्हें ही देना होगा। और पात्र १ ‘पात्र तो, सौग्य, सभी अभी नहीं बतलाए जा सकते । हाँ, उनकी सख्या कम रखनी होगी। कितनी रखनी चाहिए । सोलहसे बीस तकको हम आसानी से तैयार कर सकते हैं। मैं सोलह तक ही रखनैकी कोशिश करूंगा।' ‘पुरूरवा, तौ सौम्य, तुम्हें बनना होगा और उर्वशीके लिए हमारी प्रभा कैसी रहेगी ? आज तुमने देखा उसके अभिनयको मेरी अनभ्यस्त आँखोंको तो, वह निर्दोष मालूम हुआ।