पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/१९०

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• प्रमा १८६ ‘कथानक तो मैं भी जानती हैं। उर्वशीको अप्सरा करके तुमने बार-बार सम्बोधित किया था । 'उर्वशी थी ही अप्सरा । • • ‘फिर उसमें पुरूरवाको उर्वशीके वियोगमै सरिता, सरोवर, पर्वत, वन सबमें ढूंढनेमें विह्वल चित्रित किया था।' 'पुरूरवाकी उस अवस्थामैं यह स्वाभाविक था।

  • फिर उर्वशी-वियोगके गायकने लतागृहमें अश्रुधाराको वीणाकी भाँति गीतका संगी बना दिया था।

‘गायक और अभिनेताको तन्मय हो जाना चाहिए, प्रभा । 'नहीं, तुम मुझे साफ़ बतलाना नहीं चाहते । “तुम क्या समझती हो है। " 'मैं समझती हूँ, तुमने किसी पुरानी उर्वशीके वियोगका गान नहीं गाया था। और फिर “तुम्हारी उर्वशी-उर-चसी ( हृदयमें बसी )---थी, वह अप्सरा-- अप=सरयूके जलमें, सरा=तैरनेवाली थी। और फिर १ । इस उर्वशीका पुरूरवा किसी हिमालय-जैसे पर्वत, बुनखण्ड, सरिता, सरोवर और गुल्ममें नहीं बल्कि साकेतकी सरयू, पुष्योद्यानके सरोवर, क्रीड़ा-पर्वत, वन और गुल्मको ढूढता फिरता था । .. और फिर है। ‘उसके आँसू किसी पुराने पुरूरवाकी सहानुभूति में नहीं, बल्कि अपनी ही आगको बुझानेके लिए निकले थे | और एक बात मैं भी कहूं, प्रभा 'कहो, अब तक मैंने ही अधिक कहा ।। और उस दिन लतागृहसे निकलते वक्त मैंने तुम्हारे इन मनहर नीले नयनों को आरक्ष और अधिक सूने देखा था।