पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/१९६

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प्रभा

युगके महान् कवि शाश्वत अश्वघोषका ही खयाल मुख्य होना चाहिए; क्योंकि वह एक व्यक्तिका नहीं, बल्कि विश्वकी महानिधि है। कालकररामके उस विद्वान् भिक्षुकी बात याद है न, जिसे हम परसों देखने गए थे ?' 'वह अद्भुत मेधावी मालूम होता है।' हाँ, और बहुत दूर-दूर तक धूमा भी । उसका जन्म मिसकी अलसदा ( सिकंदरिया ) नगरीका है। ‘हाँ मैंने सुना है। एक बार मुझे समझमें नहीं आती, प्रिये ! यवन सारे ही बौद्धधर्मको क्यों मानते हैं ? क्योंकि वह उनकी मनोवृत्ति और स्वतंत्र प्रकृतिके अनुकूल' मालूम होता है।' लैकिन बौद्ध सबको विरागी, तपस्वी और भिक्षु बनाना चाहते हैं ? बौद्धोंमें गृहस्थोंकी अपेक्षा भिंतु बहुत कम होते हैं, और बौद्ध गृहस्थ जीवनका रस लेनेमें किसीसे पीछे नहीं रहते ।' इस देशमें और भी कितने ही धर्म हैं, आख़िर यवनोंका बौद्धधर्म पर इतना पक्षपात क्यों ? यह फिर भी समझमें नहीं आता। यहाँ बौद्ध ही सबसे उदार धर्म है। जब हमारे पूर्वज भारतमे आए, तो सब म्लेच्छ कहकर हुमसे घृणा करते थे । आक्रमणकारी यवनों की बात मैं नहीं कर रही हैं, यहाँ बस जानेवाले अथवा व्यापार आदिके सम्बन्धसे आनेवाले यवनों के साथ भी यही बर्ताव था। किन्तु बौद्ध उनसे कोई घृणा नहीं करते थे । यवन वस्तुतः अपने देश में भी बौद्धधर्मसे परिचित हो गए थे। अपने देशमै भी ?' 'हाँ, चन्द्रगुप्त मौर्य के पौत्र अशोकके समय कितने ही बौद्ध-भिक्षु यवन-लोक ( यूनानी लोगों ) में पहुँचे थे। हमारे धर्मरक्षित इस देशमें आकर भिलु नहीं बने । वह मिसमें अलसदा ( सिकंदरिया ) के विहार में भिल्ल हुए थे। 'मै, उनसे फिर मिलाना चाहता हूँ, प्रभा ।