पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२०३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

२०२ चौल्गासे गंगा की कोई ऐसी बात बतलायें, जिसके जाननेसे हमें अपने मनसे भी बहुतसो समझ जाने में सुभीता हो ।' 'अनात्मवाद है, कुमार | ब्राह्मण आत्मको नित्य, ध्रुव, शाश्वत तत्व मानते हैं। बुद्ध-जगत्के भीतर-बाहर किसी ऐसे नित्य, ध्रुव, शाश्वत तत्त्वको नहीं मानते, इसीलिए उनके दर्शनको अनात्यवादअनित्यता, क्षण-क्षण उत्पत्ति-विनाश का दर्शन कहते हैं । मेरे लिए यह एक बात ही काफी है, भदन्त ! बेडेकी भाँति धर्म तथा अनात्मवादको घोषणा करनेवाले बुद्धको अश्वघोष शतशः प्रणाम करता है। अश्वघोष जिसको हुँढता था, उसे उसने पा लिया । मैं अपने भीतर अनुभव कर रहा था कुछ ऐसी ही लहरोको; किन्तु मैं उसे नाम नहीं दे पाता था। आज बुद्ध की शिक्षाको लोकनै ठीकसे माना होता, तो दुनिया दूसरी ही होती ।। 'ठीक कहा कुमार ! हमारे यवन देशमें भी महान् दार्शनिक पैदा हुए हैं, जिनमें पिथागोर, हेराक्लितु तो भगवान्के समय जीवित थे। सुकात, देमोक्रितु, अफलातू, अरस्तू उनसे थोड़ा बादमें हुए । इन थवन दार्शनिकोंने गम्भीर चिन्तन किया; किन्तु ईराक्लिनुको छोड़ सभी शाश्वतवाद-नित्यवाद-से ऊपर नहीं उठ सके । वर्तमानका उन्हें हदसे ज़्यादा मोह था । यही कारण था कि वह भविष्यको भी उससे बाँध रखना चाहते थे। हैरालितु अवश्य बुद्धकी भाँति जगत्को किसी दो क्षण भी वैसा ही नहीं मानता था; किन्तु इसमें उसका एक वैयक्तिक स्वार्थं था।'

  • दर्शन-विचारमें वैयक्तिक स्वार्थ !

‘पैट सभीके पास होता है, कुमार | उस वक्त हमारे एथेन्स नगरमें गण–बिना राजाका राज्य---था। पहले हैराक्लितुकै परिवारकी तरहकै बड़े-बड़े सामन्त गण-शासनके सूत्रधार थे, पीछे उनको हटाकर व्यापारियों-सेठों-नै शासन सूत्र अपने हाथमें लिया। इस अवस्थामैं