पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२०४

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प्रभा हेराक्लिनु असन्तुष्ट था । वह परिवर्तन चाहता था; किन्तु आगे जानेकै लिए नहीं, बल्कि पीछेकी ओर लौटनेके लिए। | 'हमें परिवर्तन चाहिए; किन्तु आगे बढ़ने के लिए पीछे लौटने लिए नहीं; मैं समझता हूँ, भदन्त, अतीत मुर्दा है। | "बिल्कुल ठीक कहा, कुमार ! बुद्ध परिवर्त्तन चाहते थे, और बेहतर जगत्को लानेके लिए भिक्षु-सघको उन्होंने उसी भविष्यके जगत्के लिए एक नमूने के तौरपर पेश किया है। ‘जहाँ जात-पाँत नहीं, जहाँ ऊँच-नीच नहीं । 'जहाँ सबके लिए भोग समान है, जहाँ सबके लिए सेवा करना समान है । तुमने हमारे महास्थविर धर्मसेनको बाहर झाड़, लगाते देखा होगा १ ‘वह काले-काले १२ । 'हाँ, वह इसमें सबसे श्रेष्ठ हैं । हम रोज़ पंच-प्रतिष्ठितसे उनकी वदना करते हैं । सारे कोसत-देश भितु-संधके वह नायक हैं ।। सुना है, वह चण्डाल-कुलके हैं ? 'भिक्षु-सघ कुल नहीं देखता कुमार वह गुण देखता है। वह अपनी विद्या और अपने गुणोंसे हमारे नायक हैं, इमारे पिता हैं। उनके भिक्षा-पात्रमें यदि पात्र चुपड़ने भरकी भी कोई चीज़ मिल जाती है, तो वह बिना साथियोंको दिए नहीं खावे । यही बुद्धकी शिक्षा है। पहननेकै तीन कपड़ों, मिट्टी भिक्षा-पात्र, सूई जलछक्का, अस्तुरा और कमरबन्दके सिवाय हमारी सारी चीजें सघकी हैं। यह घर, वाग़, मंच, पीठ आदि सब सघके हैं। हमारे किसी-किसी विहारमें खेत भी हैं वह भी संघके हैं । सघ देख-सुनकर एक आदमीको भित्तु बनाता है; किन्तु जो संघमें प्रविष्ट हो गया भिन्तु बन गया—वह सबके समान है । “इस तरहका सृघ यदि सारे देशके लिए बनता ?' ‘वह कैसे हो सकता है, कुमार ? राजा और घनी कब दूसरोंको बराबर होने देंगे १ भिक्षुओंने एक दासको सघमें दाखिल कर लिया था।