पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२०५

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२०४ चोलासे गंगा संघमें दाखिल होते ही वह अदास--सबके समान था; किन्तु जिसका वह दास था, उसने इल्ला मचाना शुरू किया। दूसरे दास-स्वामी भी उसके साथ शामिल हो गए । राजा स्वयं हज़ारों दासोंके स्वामी होते हैं। वह भी अपनी सम्पत्तिपर इस तरहका प्रहार कैसे सह सकते ? बुद्ध क्या करते, उन्होंने बचन दिया कि आगेसे संघ दासको अपने भीतर नहीं लेगा । हमारा सँध विषमतापूर्ण समुद्रमै एक छोटा-सा द्वीप है, इसीलिए वह सुरक्षित नहीं है, जब तक कि संसार में इस तरहकी ग़रीबी, इस तरहकी दासता है। शरतकी पूनौ थी। शामसे ही चन्द्रमाको थाल पूर्व क्षितिजपर उग आया था, और जैसे-जैसे क्षितिजपर फैली सूर्यकी अन्तिम लाल किरणे आकाश छोड़ रही थीं, वैसे ही वैसे चन्द्रमाकी शीतल श्वेत किरणे प्रसरित हो रहीं थीं। अश्वघोष अब अधिकतर प्रभाकै घरपर रहा करता था । दोनों छतपर बैठे थे, उसी समय प्रभाने कहा*प्रियतम, मुझे सरयूकी लहरे बुला रही हैं--वह लहरे, जिन्होंने सबसे पहले तुम्हारा स्पर्श मेरे पास पहुँचाया था, जिन्होंने हमें प्रेम-सूत्रमे बधा था। तबसे दो वर्ष हो गए, किन्तु वह दिन आज ही बीता मालूम होता है। हमने कितनी चाँदनी रातें सरयूकी रेतपर बिताईं। वह कितनी मधुर होती हैं । आज फिर मधु चाँदनी है ! प्रिय, चलो, चलें सरयूके तीर ।' दोनों चल पड़े। धारा नगरसे दूर थी। चाँदनीमें चमकती सफेद बालूपर वह दूर तक चलते गए । प्रभाने अपने चप्पलोंको हाथमे ले लिया था। उसे पैरोंके नीचे दबती सिकताका स्पर्श सुखद लगता था । उसने अश्वघोषकी कटिको अपने दोनों हाथों से लपेटकर कहा-'प्रिय, इस सरयू सिकताका स्पर्श कितना आहादक है १७

  • पैरोंमें गुदगुदी लगती है। *जिससे हतिरेक हो रोमांच हो उठता है। प्यारी सरयू सरिता !