पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२१७

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२१६ वोलासे गंगा “दादा ! मै अपने कुलके बारेमे तुमसे सच्ची बातें जानना चाहता हूँ। क्यों लोग हमें पक्का ब्राह्मण नहीं समझते, और "जुझवा” कहकर चिढ़ाते हैं। माँसे मैने कई बार पूछा किन्तु वह मुझे ठीकसै बतलाना नहीं चाहतीं ।” इसके पूछनेकी क्या जरूरत है, बच्चा !' “बहुत जरूरत है दादा ! यदि मै असली बातको ठीकसे जानता रहूंगा, तो अपने कुल पर होने वाले आक्षेपका प्रतीकार कर सर्केगा । मैं अब ब्राह्मणों के बारे में काफी पढ़ चुका हूँ दादा ! सुझमे इतना विद्याबल है, कि मैं अपने कुलके सम्मानको कायम रख सकें।" “सो तो मुझे विश्वास है, किन्तु बच्चा ! तुम्हारी माँ बेचारी खुद इमारे कुलके बारेमे नहीं जानती, इसलिये, वह बतलाना नहीं चाहती है, यह बात न समझो । जहाँ लोकमे हमारे कुलकी स्थितिको सबध है, वह तो अब नगरोंके संबधने तैकर दिया है । इमारी ब्याह-शादी उनकें । साथ होती है। अवन्ती और लाट ( गुजरात में उनकी संख्या भी बहुत है, इसलिये हमे तो उनके साथ डूबना-उतराना है, तुम्हारी पीढ़ी वस्तुतः यौधेयकी अपेक्षा नागर ज्यादा है। यौधेय क्या दादा ११ "हमारे कुलका नाम है बच्चा ! इसको लेकर लोग हमे "बुझवा कहते हैं ।। "यौधेय ब्राह्मण थे दादा १७ *"ब्राह्मणसे अधिक शुद्ध आर्य " "लेकिन ब्राह्मण नहीं । इसका उत्तर 'हाँ' या 'नहीं' के एक शब्दमे कहनेकी जगह अच्छा होगा, कि मैं यौधेयका परिचय ही तुम्हें दे दें। यौधेय शतद् ( सतलज ) और यमुना के बीच हिमालयसै मरुभूमिके पास तकके निवासी और स्वामी थे, सारे यौधेय स्वामी थे । | स्वारे यौधेय |