पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२१८

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सुपर्ण यौधेय “हीं, उनमें कोई एक राजा न था, उनके राज्यको गणराज्य कहा जाता था। गण या पंचायत सारा राजकाज चलाती थी। वह एक आदमी-राजाके---राज्यके बड़े विरोधी थे। ऐसा राज्य होना तो मैंने कभी नही सुना दादा !” । “लेकिन ऐसा होता था बच्चा ! मेरे पास यौधेय गणके तीन रुपये हैं, मेरे पितासे वह मुझे मिले । देशसे भागते व उनके पास जो रुपये थै, उन्हींम से यह हैं ।” "तो दादा ! तुम यौधेयके देशमें नहीं पैदा हुए १५ | "मै दस वर्षका था जब मेरे पिता-माताको देश छोड़ना पड़ा, मेरे दो बड़े भाई थे, जिनके वशजोको तुम यहाँ देखते हो ।' } "देंश क्यों छोड़ना पड़ा दादा १५ “पुरातन कालसे वह यौधेयोंकी अपनी भूमि थी । बड़े बड़े प्रतापी राजा चक्रवर्ती-मौर्य, यवन, शुक---भारतभूमि पर पैदा हुए किन्तु किसीने थोड़ा सा कर ले लेनेके सिवाय हमारे गणको नहीं छेड़ा । यही गुप्त हाँ, इसी चंद्रगुप्त—जो अपनेको विक्रमादित्य कहता हैं, और जिसका दर कभी कभी उज्जयिनी में भी लगा करता हैं--का वश चक्रवर्ती बना, तो उसने यौधेयका उच्छेद कर दिया । यौधेय सवल चक्रवर्तीको कुछ भेट दे दिया करते थे, किन्तु गुप्त राजा इससे राजी नहीं हुआ। उसने कहा, हम यहाँ अपना उपरिक (गवर्नर ) नियुक्त करेंगे, यहाँ हमारे कुमारामात्य ( कमिश्नर ) रहेंगे । जिस तरह हम अपने सारे राज्यका शासन करते हैं, वैसा ही यहाँ भी करेंगे। हमारे गणनायकोने बहुत समझाया, किं यौधेय अनादिकालसे गए छोड़ दूसरे प्रकारके शासनको जानते नहीं हैं। किन्तु, राज मदमत्त वह इसे क्यों मानने लगा | आखिर यौधेयोंने अपनी इष्ट गणदेवीकै सामने शपथ ले तलवार उठाई। उन्होंने बहुत बार गुप्तोंकी सेनाको मार भगाया, और यदि वह चौगुनी पचगुनी तक ही रहती तो वह उनके सामने न टिकती। किन्तु लौहित्य ( ब्रह्मपुत्र )से मरुभूमि तक फैले उसके महान् राज्यको