पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२१९

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२९६ चोलासे गंगा सारी सेनाके मुकाविलेमें यौधेय कहाँ तक अपनेको वच्चा पाते । यौधेय जीतते जीतते हार गये-जन हानि इतनी अधिक हुई । गुसोंने हमारे नगर गाँव सभी बर्बाद कर दिये, नर-नारियोंका भीषण संहार किया। इमारे लोग तीस साल तक लड़ते रहे वह अधिक कर देनेके लिये तैयार थे, किन्तु चाहते थे कि उनके देशकी गण शासन प्रणाली अक्षुण्ण रहे कैसा रहा होगा वह गण-शासन दादा ११ “उसमें हर एक यौधेय शिर ऊँचा करके चलता था किसीके सामने दीनता दिखलाना वह जानता न था । युद्ध उसके लिये खेल था, इसीलिये उसके वंशका नाम यौधेय पट्टा था ।” । तो हमारी तरह और भी यौधेय होंगे न दादा है' “होंगे, बच्चा ! किन्तु, वह तो सूखे पत्तोंकी भाँति इवामें बिखेर दिए गए हैं ।” और हमारी तरह किसी नागरवंशभे मिलकर आत्म-विस्मृत बन जाने वाले हैं । “हम अपनेको ब्राह्मण क्यों कहते हैं दादा है। “यह और पुरानी कहानी हैं वच्चा ! पहिले सारी दुनियामें राजा नहीं, गणहीका राज्य था । उस वक्त ब्राह्मण, क्षत्रियका फ़र्क नहीं था।" "ब्रह्म-क्षत्र एक ही वर्ण था दादा ! "हाँ, अव ज़रूरत होती तो आदमी पूजा-पाठ करता, जब जरूरत होती तो खड्ग उठाता है किन्तु, पीछे विश्वामित्र, वशिष्टने आकर व बाँटना शुरू किया। तभी तो एक पिताके दो पुत्रोंमें कोई रन्तिदेवकी भाँति क्षत्रिय • कोई गौरिवीतिकी भाँति ब्राह्मण ऋषि होने लगा । “गैसा लिखा है, बच्चा ?' "हाँ, दादा ! वेद और इतिहासमें ऐसा मिलता है। संकृति ऋषि के ये दोनों पुत्र थे। यही नहीं, और भी कितनी ही विचित्र वातें इन