पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२२१

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२२० वोगासे गंगा *ब्राझण गोमास खाते थे, क्या कहते ही बच्चा !! 'महाभारतपाँचवा वेद झूठ कह सकता है; दादा १) “क्या दुनिया इतनी उलट पुलट गई है । उलटती पुलटती जाती है दादा ! तो भी अपनेको पक्का ब्राह्मण कहनेवाले यह दिवान्ध सबकी अखि सुंदवाना चाहते हैं। मुझे विश्वास हो गया कि हमारे पूर्वज यौधेय लोग ब्राह्मणोके छलछद फैलनेसे पहिलेके रीतिरिवाज, धर्मकर्म पर चलते थे । “हाँ, और वह ब्राह्मणों को कभी अपनेसे ऊँचा नहीं मानते थे । यहाँ, श्राकर दादा! तुमने अपने लड़कों-भतीजोंकी शादी आवन्तक (मालवीय) ब्राह्मणोंको छोड़ नागमे क्यों की १३ | "दो कारण थे, एक तो ये ब्राह्मण हमारे कुलके बारेमें सन्देह कर रहे थे, किन्तु उससे कुछ नहीं होता, चाहते तो हम ख़ास ब्राह्मण कन्याओं से ब्याह कर लेते। हमने नागरोसे ब्याह-शादी इसलिये करनी शुरू की, कि वह भी हमारी भाँति ज्यादा गौर होते हैं, और हमारी ही भाँति ब्राह्मणोके न मानने पर भी अपनेको ब्राह्मण कहते हैं । 'नागर कौन हैं दादा ॥ | "ब्राह्मण, सिर्फ ब्राह्मण कहने से तो नहीं मानते, वह तो पूछते हैं। अहाँके ब्राह्मण कौन गोत्र । ये हमारे सम्बन्धी लोग नागरों में बताते थे, इसलिये इन्होंने अपनेको नागर ब्राह्मण कहना शुरू क्रिया, जैसे कि हृम अपनेको यौधेय ब्राह्मण कहते हैं।” साँकृति रन्तिदेवं च सुतं सञ्जय शुशुम । हशतसाहस्री सन् सूदा महात्मनः ॥ गृहनम्यागतान् विप्रान् अतिथीन् परिवेषकाः । -द्रोणपर्ब ६७११-६ “तत्र स्म सूदाःकोशान्ति सुसृष्ट मणिकुण्डताः ॥ सूप भूयिष्ठम अध्वं नाथ सोस यथा पुरा ।५-द्रोणपर्व १७/१७-१८ -~-शान्तिपथै १७-१८