पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२२३

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२२२ वोल्गासै गंगा "विक्रमादित्य वस्तुतः धर्मका संस्थापक है सुपर्ण ! उसने देखो, हूणोंसे भारतभूमिको मुक्त किया ।" । , किन्तु, उत्तरापथ ( पजाब ) और कश्मीर में अब भी हुए हैं, आचार्य !" “बहुत भागसे उन्हें निकाला । राजा इस तरह एक दुसरेको निकाला ही करते हैं, और दूसरे की जगह अपने राज्यको स्थापित करते हैं । किन्तु, गुप्तवंश गो-ब्राह्मण रक्षक है । * *आचार्य ! मूढ़ोंको भरमानेवाली ऐसी बातोंके सुननेकी आशा मैं आपसे नहीं करता । आप जानते हैं, हमारे पूर्वज ऋषि गोरक्षा करते थे, किन्तु गोभक्षणके लिये । 'मेघदूत'*मैं आप हीने चर्मण्क्ती (चवल) को गाय मारनेसे उत्पन्न रन्तिदेवको कीति लिखा है।” “तुम धृष्ट हो सुपर्ण, मेरे प्रिय शिष्य ! यह मै सुननेके लिये तैयार हूं, लेकिन मैं यह सहने के लिए तैयार नहीं हैं, कि मेरा अनन्तशीलका चक्रवर्ती इन धर्मवसक गुप्त राजाओंके सामने घुटने टेके ।” तुम उनको धर्मध्वंसक कहते हो सुपर्ण ! हाँ, जरूर । नन्दों, मौर्यो , यवनों, शकों और हूणोंने भी जो पाप नहीं किया, वह इन गुप्तोंने किया । भारतमहीसे इन्होंने गणराज्यका नाम मिटा दिया है। गण-राज्य इस युगके अनुकूल न थे सुपर्छ । यदि प्रथम चंद्रगुप्त या समुद्रगुप्तने इन गणको कायम रखा होता तो उन्होंने हूणों तथा दूसरे प्रवल शुओंको परास्त करने में सफलता न पाई होती ।

  • "ब्यालम्बेथाः सुरभिंतनयातम्भजाँ मानयिष्यन् , स्रोतोमूत्य भुविपरिणत रन्तिदेवस्य कीसिंम्,'मेघदूत ११४५