पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२२७

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इस प्रबंधकी असल निकला था। वह पहिला समय में वोल्गासे गंगा (अजन्ता ) विहार नामका एक बहुत प्रसिद्ध विहार है, जहाँ संसारके सभी देशोंके बौद्ध भिक्षु रहते हैं। मैं वहाँ के लिये रवाना हो गया। अब तक मैं जहाँ भी गया था, पासमें काफी संबल, तथा सहायक साथियों के साथ गया था, अबकी बार यह पहिला समय था, अब कि मैं निस्सहाय निस्सबल निकला था। रास्ते में चोरोंका डर न था, गुप्तके इस प्रबंधकी प्रशंसा करनी होगी । किन्तु, क्या गुप्त-शासनाने देशके प्रत्येक परिवारको इतना समृद्ध कर दिया था, जिससे कि बदमारीरजनी उठ गई थी ? नहीं, गुस राजाने कर उगाहनेमे अपने पहले सारे शासकोको मातकर दिया था राज-प्रासादोंके बनानेपर कभी इतना धन नहीं खर्च किया गया होगा, और उनके सजाने में तो और भी इद्द की गई । पहाड़ों, नदियों, पुष्करिणियों, समुद्रोंको सशरीर उठाकर उन्होंने अपने रम्य प्रासादोंके पास रखनेकी कोशिश की थी। उनके क्रीड़ा-वन वस्तुतः वनसे मालूम होते थे, जिनमे पिंजड़ोंमें हिस-पशु रहते, और बाहर मृग, गवयं घूमते । क्रीड़ाफ्वतमे स्वाभाविक शैलपार्वत्य वन, जल प्रपात बनाये जाते । सरोवरोको पतली नहरोसे मिला सेतु और नावे दिखलाई जातीं । प्रासादके भीतर के सामानमें हाथीदाँत, सोना, रूपा, नाना रक्ष, चीनाशुक ( रेशमी वस्त्र ), महार्च कालीन आदि प्रचुर परिमाणमें होते । प्रासादको सजाने में चित्रकार अपनी तूलिकाका चमत्कार दिखलाते, मूर्तिकार पाषाण या धातुको सुन्दर मूर्तियोंको यथास्थान विन्यास करते । विदेशी यात्रियों और राजदूतोंके सुखसे इन चित्रों और मूर्तियोंकी मैंने भूरि मूरि प्रशसा सुनी थी, जिससे मेरा शिर गर्वोन्नत जरूर हुआ था; किन्तु, जब मै हुद गाँव के गरीब घरोंकी अवस्था देखता ढो उज्जयिनीके उन प्रासादोंपर जल भुन जाता मान, पासके गढ़े-नाड़हियाँ जैसे गाँवमें उठी दीवारों और टीलों के कारण होती हैं, उसी तरह यह दरिद्रता उन्हीं प्रासादोंके कारण है। नगरों, निगमों ( कस्बों) ही नहीं गाँवोंमे भी चतुर शिल्पी नाना भौतिकी वस्तुये बनाते-कातनेवाली सूक्ष्म तंतुओं, ततुवाय सूक्ष्म वस्त्रोको तैयार सौना, रूपा, नाना में होते । प्रासावर पाषाण या धाइराजदूतक