पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२३९

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२३६ योगासे गगा गई, तो वह हमारे घर रहा करती थीं। मेरे ऊपर उनका परम स्नेह या। मैंने उनके उस सामन्त-सम्बन्धकी और कभी खयाल नहीं किया । आखिर इस अबलाका दोष क्या था ? सुन्दर तरुणियाँ कम होती हैं; किन्तु, जब उनके प्रथम अधिकारी कुछ थोड़े-से सामन्त हों, तो एकएक-सामन्तपर उनकी कितनी संख्या पड़ेगी, इसे अप खुद समझ सकते हैं। सामन्तों और राजाने इन तरुणियोंके स्वीकार के कई तरीके निकाले थे। कोई-कोई पतिके पास जाने से पहली रातको उन्हें अपनी समझते थे । इसे लग धर्म-मर्यादा समझने लगे थे और अपनी बेटियों, बहुओं तथा बहनोंको डोलियोंपर बैठाकर अन्तःपुरमें एक रातके लिये पहुँचाते थे । किन्तु, डोला न भेजनेका मतलब था सर्वनाश । पसन्द आनेपर वृह रनिवास में रख ली जाती थीं-रानीके तौर पर नहीं, परिचारिकाके तौरपर । रानी बनने का सौभाग्य तो सिर्फ राजकुमारियों और सामन्त-कुमारियोंको ही हो सकता था । अन्त:पुर (रनिवास,की इन इज़ारों-हज़ार तरुणियों में अधिकांश ऐसी थीं, जिन्हें एक दिन अधिक राजा या सामन्तका समागम नहीं प्राप्त हुआ। बतलाइए, उनकी तरुणाई उनसे क्या माँगती होगी । मेरी अभिनेत्रियाँ अधिकृतर इन्हीं रनिवाससे आती थी, और चोरीसे भागकर नहीं । इसे बुरा समझिये या भला, मैं राजाओं और सामन्तको वातकी आतमै अपनी ओर खीचनेम सिद्धहस्त था---राजनीतिमें नहीं, उससे मेरा कोई मतलब न था । इसकी साक्ष्य दे रहे थे वे सैकड़ों पत्र, जो राजाओं और राज-सामन्तों की छोरसे मेरी प्रशसाम मिले थे। जब वह कलाकी तारीफ करते, तो मैं कलाविका रोना रोना शुरू करता---'क्या करें देव, कलाकार तरुणियाँ होनेपर भी मिलती ही नही । "होनेपर भी नहीं मिलती है। एक दिनके चुम्बन, एक दिनकै आलिंगन या एक दिनको सहशय्याके वाद जहाँ लाखों तरुणियाँ अन्तःपुरोम वन्द करके रख दी. जायें, व कलाकार स्त्रियाँ कहाँसे मिले हैं।