पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२४१

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बोलासे गंगा सकती थी, वह अब उसे धर्म-विरुद्ध समझते हैं। स्वयं इन सारी खुराफातों इस नये (हिन्दू) धर्म-की जड़ गुप्त राजवंशमे ही रामगुप्त की विधवा नही, सधवा स्त्रीको चन्द्रगुप्त विक्रमादित्यने अपनी पटरानी बनाया था। तरुण स्त्रीको विधवा रखने में ब्रह्मा-विष्णु-महेश्वर भी उन्हें रोक नहीं सकते, और किस मुंहसे रोकेंगे, जब कि अपनीअपनी पत्नियोंके रहते वह खुद पराई स्त्रियोंके पीछे दौड़नेसे बाज़ नहीं आए । तरुण विधवा रखनेका आवश्यक परिणाम है गर्भपात, क्योंकि बच्चा उत्पन्नकर पालन करने का मतलब है विधवा-विवाह स्वीकार करना, जिससे कि वह बचना चाहते हैं। इसी डरसे अब ब्राह्मणों और सामन्तोंने कुलीनता सिद्ध करनेका नया ढग निकाला है। वह हैं। विधवाओंको जिन्दा जलाना । स्त्रीको इस तरह जिन्दा जलानेको वे लोग महापाप नहीं, महापुण्य समझते हैं । हर साल लाखों-लाख तरुणियोंको बलात् अभिशाव करते देख जिन देवताओंका हृदय नहीं पसीजता, वह या तो वस्तुतः ही पत्थर के हैं अथवा हैं ही नहीं। कहते हैं, स्त्री सती अपने भनसे होती हैं ! धूर्त ! पाखडी ! नराधम ! इतना झूठ क्यों बोलते हो ? इन राजाओंके अन्तःपुरॉकी एक बारकी स्पृष्ठ सैकड़ों स्त्रियों में जिन्हें तुम गर्ने भूनकर सती बना रहे हो कितनी हैं, जिनका उस नर-पशुके साथ ज़रा भी प्रेम है, जिसने उन्हें जीवन-भर के लिए वन्दिनी बनाया, उसके लिए प्रेम १और वियोगमें पागल हो आगमें कूदनेका जो एकाध दृष्टान्त मिलता है, उसके पागलपनको भी दो-चार दिनोंमें ठंडा किया जा सकता है । आत्म-हत्या धर्म ! सत्यानाश हो तुम पाखंडी पुरोहितों और राजाका । प्रयागके उस बरगद-अक्षयवटसे जमुनामें कूदकर मरनेको इन्होंने धर्म बतलाया, जिसके कारण हर साल हुज़ारों पागल मरकर 'स्वर्ग पहुँच रहे हैं ! केदार-खडके सत्पथमें जा बर्फ में गलनेको इन्होंने धर्म कहा, जिसके कारण हर साल सैकड़ों सत्पथ के रास्ते स्वर्ग सिधारते हैं ! मैं सारी आत्म-हत्याओंके ख़िलाफ़ आवाज़ नहीं उठा सकता था, क्योंकि मुझे ब्राह्मणोमें राजाके आश्रित रहना था । में पागल वर्ष की आत्महत्या आलिल