पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२४९

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वोलासे गंगा भिक्षुओंसे सुना कि उनके देशमें ब्राह्मण-जैसी कोई सर्वशक्तिमान धर्मनायक जाति नहीं हैं। उनके इस कहनेसै मुझे यह भी समझमें आ गया कि क्यों उन देशम डडे और पुरवे लेकर चलनेवाले चण्डालोंका पता नहीं । ब्राह्मणोंने हमारे देश मनुष्योंको छोटी-बड़ी जातियों में इस तरह बाँट दिया है कि कोई अपनेसे नीचेवालेको अपनैसे मिलने देने के लिए तैयार नही । इनका धर्म और ज्ञान साफ़ राहु-केतुकी छाया है। नालन्दाम देश-देशान्तरोंकी विचित्र खबरें बहुत मिला करती थीं, इसीलिए मैं एक-दो वर्ष पर्यटनकर फिर छः महीनेके लिए नालन्दा चला जाता हूँ। एक बार एक पारसीक भिजुने बताया कि उनके देशम मज्दक नामका एक विद्वान् कुछ ही समय पहले हुआ था, जिसने एक प्रकार संघवादका प्रचार किया था । बुद्धने भी भिक्षुभिक्षुणियोंके लिए एक तरहके संघवादका–जहाँ तक सम्पत्तिका सवाल है-उपदेश किया; किन्तु वह सघवाद अब सिर्फ विनयपिटकम पढ़नेके लिए हैं। अब तो बड़ी-बड़ी वैयक्तिक । पौदूगलिक ) सम्पत्ति रखनेवाले मितु हैं । आचार्य मच्दक ब्रह्मचर्य और भित्तुवादको नहीं मानता था। वह मानव प्रकृत जीवन --- प्रेमी प्रेमिका, पुत्र-पौत्रके जीवन-को ही मानता था; किन्तु कहता था कि सारी बुराइयोंकी जड़े मैं और मेरापन हैं। उसने कहा -“सम्पत्ति अलग नहीं होनी चाहिए; सब मिलकर कमायें, सब मिलकर खायें। पति-पत्नी अलग नहीं होने चाहिए, प्रेम स्वेच्छापर रहे और सन्तान सबकी सम्मिलित मानी जाय। वह प्राशी-दया और संयमकी भी शिक्षा देता था। मुझे उसके विचार सुन्दर मालूम हुए। जब मैंने सुना कि मज्दुक और उसके लाखों अनुयायियों को मारकर एक पारसीक राजा–नौशेरवाँ–ने न्यायमूर्तिकीं उपाधि धारण की हैं, तो मुझे मालूम हो गया कि जब तक राजा रहेंगे, जब तक धर्म और उसके दान पुण्यसे जीनवाले श्रमण-ब्राह्मण रहेंगे, तब तक पृथिवी स्वर्ग नहीं बन पायगी।