पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२५४

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२५३ चक्रपाणि -दूर हो मुस्कराहट आने लगी । राजाका स्थूल शरीर मसनदके सहारे ओठंग गया, और उसने किसी रानीको एक बगलमै, किसीको दूसरी बगलमे दबाया, किसीकी गोदमे सिरको रखा और किसीके वक्षस्थलपर भुजाअोंको । सुराके प्याले बीच-बीचमें चल रहे थे। रानियोंके साथ कामोत्तेजक परिहास हो रहे थे। राजाने इसी समय नाचनेकी आज्ञा दी । घाघरा पहने, मुँघरू बाँधे, विल्वस्तनी, अनुदरा, विकट नितम्बा सुन्दरिय नाचनेके लिए खड़ी हुई । वीणा और मृदंग ध्वनित होने लगे । काकली गानके साथ नृत्य शुरू हुआ। एक गानके वाद राजाको वह फीका लगने लगा। उसने सुन्दरियोको नग्न हो नाचनेकी आशा दी। नर्तकियोंने सारे वस्त्र और सारे आभूषण उतार दिए, सिर्फ पादकिंकिणी भर रखी । पार्श्व में बैठी रानियों और तरुणी परिचारिकाओंके साय आलिंगन-चुम्बन और परिहास चलता रहा। बीच-बीचमें नमनर्तन होता रहा। जिसका नश-शरीर महाराजाको आकर्षित करता, वह उनके पास आ जाती और फिर दूसरी नग्न हो उसका स्थान ग्रहण करती । महाराजकी आँखें और लाल हो गई थीं। उनके कठ और स्वर पर भी सुराने प्रभाव डाला था--‘घु-धत्-त्-ते-रे तु-तुर् -कों-की-।। मू-मे-रे ई-इन-न्द्र-म्-पु--में कौन सा--ला- आ--त्-ता है। स् सब् न्-नग ना--चें। | शालाकी सारी रानियोंने अपने-अपने कपड़ों और आभूषणोंको उतार दिया। उनके तरुण सुन्दर गौर शरीरपर घनस्थूल कवरी (जूड़ा) से भारी हुआ सिर राजाको पसन्द नही आया। उसने कवरीको खौल देनैको कहा, और सभी सिरोंसे काली नागिनोंकी भाँति दीर्ध बेणियाँ नितम्बोंपर लटकाने लगीं। महाराजको स्वयं कंचुक उतारते देख तरुणियोंने उनके वस्त्रों और आभूषणोंको भी उतारा। उनके-माँस लटके चिबुक, अतिफुल्ल कपोल, गंगाजमुनी मूॐ, प्रसूताकी तरह लम्बित स्तनों, महाकुम्भ-सा उदर, पृथुत कोमल मास-मेदपूर्ण उरु तथा पेंडुली, रोमश स्थूल बाहुओंको देखकर साधारण तरुणी भी अवज्ञा