पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२६४

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चक्रपाणि २६३ बताओ, तुम क्या कर ए १ महाराजके शवको रनिवाससे भेज दिया है। 'हाँ ।' 'तो अब राजान्तःपुरकी स्त्रियाँ महाराजको लेकर सती होंगी है। ‘जिनको होना होगा, होंगी । और सेनापति ? “बूढा सेनापति तो आख़िरमें मरते वक्त जाग उठा था। कितने ही सेनानायक पाँसा पलटते देख भाग चले थे; किन्तु उनमें भागनेका भी कौशल न था। मुझे आशा नहीं कि उनमें से कोई बचा हो ।' | यही बात यदि तीन वर्ष पहले हुई होती और हरिश्चन्द्र हमारे महाराज तथा माधव तुम कान्यकुब्जके सेनापति हुए होते ! | लम्बी साँस लेकर माधवने कहा-'आचार्य, अापकी एक-एक बात आईनेकी भाँति झलकती थी। आपने महाराजको बहुत समझाया था कि राय पिथौरासे मिलकर तुर्कोस मुकाबिला किया जाय; किन्तु सब अरण्य-रोदन ही साबित हुआ । ‘अब अफ़सोस करनेसे कोई फायदा न होगा । बतलाओ, और क्या व्यवस्था की जाय ? ‘पाँच सौ नावे पचास-पचासके गिरोहले सैनिकोंसे भरी अभी आ रही हैं। गागा, मोगे, सलूके नायकत्वमें मैंने सेनाको बाँटकर आदेश दिया है कि चन्दावर (टावा)से पूरव हटकर तुर्केसे लड़ेसीधे कम, छापा मारकर ज्यादा-और परिस्थितिको प्रतिकूल होते देखक्र पूरबकी और इटते जायें । ‘कन्नौजके राज-प्रासाद • ?' मैंने वहाँसे जितनी चीजें हटाई जा सकती थीं, हटा दी हैं। गंगामें हो बहुत-सी नावें दो दिन पहले ही निकल चुकी थीं ।। मैंने इसीलिए, माधव, तुम्हें सेनापतिकी छायासे बचाया था। उसने अपने पहले तुम्हें मरवा दिया होता। तुमको और कुमारको