पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२६६

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, चक्रपाणि ३६५ घबरा तो नहीं रही हो, बेटी हैं। चक्रपाणिकी छत्रछायामे घबराना १ कही गहरवारवंशने पहले पहचाना होता अपने गुरु द्रोणाचार्यको ! | यह हमारे सेनापति, परम सहायक महाराजाधिराज हरिश्चन्द्रके सैनापति, माधब आ गए। 'महादेवी भामा, आपका सेवक माधव सेवामें उपस्थित है -- कह माधवने अभिवादन किया। 'मैं अपने माधवसे अपरिचित नहीं हैं। कुमारके साथ पाँसु-क्रीड़ा करनेवाले क्या कभी मुझे भूल सकते हैं ?' ‘और जिसकी मुजाएँ, भामा, गहरवार-वंशकी धूलि कुंठित लक्ष्मी को फिरसे उठा लानेके लिए शक्ति रखती हैं । 'बाबा, तुम्हारे मुंहसे भामा कहलाना कितना प्रिय लगता है । ‘पिता याद आते होंगे, पुत्री ! नहीं बाबा, हमें राजकुलमें दूसरी ही हृवा बहानी होगी। ओह, कितनी बनावट, कितना ढोंग है वहाँ १ हमे मनुष्यमे सीधा-साद सम्बन्ध स्थापित करना चाहिए । पुराने राजकुलको पिता (श्वसुर) भडारकके साथ जाने देना चाहिए । ‘गया पुत्री, वह तो बहुत देरसे गया । क्या तुमने कुमारके अन्तःपुरको देखा है । आँखोंसे आँसुओंको पोंछते हुए उसने कहा-'बाबा, आपने हमें फिर मनुष्य बना दिया।' ‘नहीं पुत्री, यदि कुमार हरिश्चन्द्रकी जगह कोई दूसरा होता, तो मैं सिर्फ पानी पीटता रहता । यह सब कुछ कुमार हरिचन्द्र ' । । बाबा ! सबने कुमार की अधखुली अखिको देखा । भामा उनके पास दौड़ गई और बोली-'मेरे चन्द्र, राहुके मुंहसे निकले चन्द्र ।। 'हो, मेरी भामा लेकिन, मै तो अभी बाबाकी आवाज़ सुन रहा था।