पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२६७

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वोल्गासे गंगा बाबा !' वह बाबा नहीं, जिसने गहरवारोंके सूर्यको डुबाया; इस बाबाको, जिसे तुम बाबा कहती हो और जिसे मैं भी बाबा कहूंगा।' चक्रपाणिने दीपकसे कुमारके पीले तरुण चेहरेको देख ललाटपर हाथ फेरते हुए कहा-‘कुमार, तबीयत कैसी है ? 'तबीयत ऐसी है, मालूम होता है, जैसे मै युद्ध-क्षेत्रसे घायल होकर नहीं लौटा हूँ ।। ‘घाव बुरा था, कुमार ! होगा, किन्तु मेरा पीयूषपाणि बाबा जो पास था । थोड़ा कम बोलो, कुमार " ‘हरिश्चन्द्रके लिए बाबा चक्रपाणिके मुंहसे निकला एक-एक अक्षर ब्रह्मवाक्य हैं। लेकिन ऐसा हरिश्चन्द्र चक्रपाणिके किसी कामका न होगा । 'बाबा, यह हरिश्चन्द्रकी श्रद्धाकी बात है; और जहाँ मेधाकी बात है, वहाँ हरिश्चन्द्र ब्रह्माके वाक्यको भी बिना कसौटीपर कसे नहीं मान सकता। कुमार, तुम्हें पाकर गहरवर-वश नहीं, हिन्दू-देश धन्य है ।' ‘बाबा चक्रपाणिको पाकर—जरा पानी भामाने तुरन्त गिलासमें पानी भरकर दिया । बाबाने नावको चलते जानकर कहा-हम बनारस चल रहे हैं, कुमार, द्वितीय राजधानीको । सेनापति माधवने सेनाके लिए आदेश दे दिया है। सेना इधर तुर्कोको रोकेगी, उधर हम बनारस में गहरवार-राजलक्ष्मी के सैनिक तैयार करेंगे। नही बाबा, जैसा आप दूसरे समय कहा करते थे, उसी हिन्दू-राजलक्ष्मीको लौटानेकी तैयारी करें । अब यह लौटी राजलक्ष्मी हिन्दूराजलक्ष्मी, होगी । इसे हिन्दू-भुज-बलसे जीतकर लौटाना होगा । चण्डाल और ब्राह्मणको भेद मिटाकर ।' 'हाँ, मेरे गुरुद्रोश है।