पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

३६८ बोल्गासे गंगा नहीं बना सके । कहिये मुल्ला अबू-मुहम्मद ! आप कितने दिनमे आशा करते हैं, सारी दिल्ली और इस दयारको मुसलमान बना देखनेकी १) | सामने बैठे तीसरे वृद्धने दाँतोंके बिना भीतर घुसे ओठोंके नीचे नाभी तक लटकती सफेद दाढ़ीके बालोंको ठीक करते कहा- मैं निराश नहीं हैं, सुल्ताने-ज़माना ! किन्तु इस अस्सी वर्षकै बूढेका तजरबा है कि यदि हम जबर्दस्ती मुसल्मान बनाना चाहेंगे, तो मुझे कभी उम्मीद नहीं कि हम उसमे पूरी तौर पर सफल होंगे ।” । 'इसलिए, हम हिन्दमें बस जानेवाले मुसल्मान उस दिन तक लिए इतिजार नहीं कर सकते, जब सारा हिंद मुसल्मान हो जायगा । हमने एक सदी यों ही गंवा दी और अपनी प्रजाको कुछ भी ख्याल न कर सिर्फ अपने भुमिकर, चुंगी, महसूलको ज्यादासे ज्यादा वसूल करना चाहा । परिणाम देखा १ शाही खजाने में एक रुपया अता है। तो पाँच चले जाते हैं तहसील करनेवालोंके पेट में । दुनियाके किसी मुल्कमे देखा है कि गाँवके मुखिया, पटेल घोड़ोंपर सवार हो निकलें, रेशमी लिबास पहनें, ईरानकी बनी कमानसे तीर चलायें। नहीं, बल्लीरुमुल्क ! मेरी सल्तनतमे अब इस तरह की लूट बन्द करनी होगी। • "लेकिन हुजुरबाला ! कितने ही हिन्दु इस लालचसे भी मुसलमान होते थे। अब यह भी रास्ता बन्द हो जायेगा ।'- मुल्लाने कहा।

  • इस्लाम इस तरहकी लूट और रिश्वत अगर कबूल करता है, तो सकरी खजाने और सकरी मालकी भी खैरियत नहीं; और, जिस हुकूमतके ऐसे खिदमतगार हों, उसके लिए क्या उम्मीदकी जा सकती है ?

| "टैसोंसे सल्तनतके पार्थ मजबूत नहीं हो सकते, जहाँपनाह ! यह मानना पड़ेगा। मुझे ख्याल था सिर्फ बद्-अमनीका।'–वज़ीरने कहा। || गाँवके अमले चाहेंगे वैसा करना, यदि उनका बस चलेगा। किन्तु गाँवोंमें अमले ज्यादा होते हैं या किसान है। “किसान ! सौ पर एक कोई अमला पड़ता होगा ।