पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२७०

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२६९ बाबा नूरदीन "उन्हीं सौ किसानोंका खून चूसकर वह घोड़ेपर सवार हो सकता है, रेशमी लिबास पहन सकता है, और ईरानी कमानसे तीर चला सकता है । इस तरहकी खून-चुसाई बन्द करा हम किसानोंकी हालत बेहतर बनायेंगे। उन्हें हुक्मतका वफादार बनायेंगे | क्या एकके नाराज करनेसे सौको खुश करना और खुशहाल देखना अच्छा नहीं है।”

  • जरूर है हुजूरबाला ! और मुझे भी अब शक नही रहा। यद्यपि हिन्दुस्तानके मुसल्मान सुल्तानोंमें आप एक नयी बात करने जा रहे हैं; किन्तु कामयाबी होगी । इससे सिर्फ गाँवोंके ऊपरी श्रेणीके कुछ लोगों को हम नाराजकर लेगे ।

"गाँवों और शहरोंके ऊँची श्रेणीके कुछ लोगोंके नाराज़ होनेकी पर्वाह नहीं । अब थोड़े दिनोंके लिए बनी झोपड़ीकी जगह हमें शासनकी मजबूत इमारतकी बुनियाद रखनी होगी। | मुल्ला कुछ सोच रहा था। उसने दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए फिर कहा-“हुजूर-वाला । अब मैं भी समझता हूँ, कि गाँवके अमिलोंकी जगह गाँवोंके सारे किसानोंकी बेहतरीका ख्याल करना हुकूमतके लिये ज्यादा लाभदायक साबित होगा । हमने गाँवों-कस्बोंके कपड़े कारीगरोंकी ओर थोड़ी निगाहकी; उनकी पचायतों को मजबूत करनेमें सहायता दी, जिससे वे बनिये महाजनोंकी तूट से बचे । वेगारमें हरएक अमला उनसे कपड़े बनवाता, रूई धुनवाता था, उसको रोका; और आज इसका यह परिणाम देख रहे हैं कि सुई-धुननेवाले, कपड़ा बनने सीनेवाले मुश्किलसे कोई होंगे, जो इसलामकी साया में न आ गये हों । “अब आपने देखा मुल्ला साहिब ! जो बात सल्तनतके लिये भली है, वह इस्लामके लिये भी भली है।" ' लेकिन एक बातकी अर्ज है जहाँपनाह ! आप अमीरुल्मोमिनीन ( मुसलमानोंके नायक ) हैं साथ ही मैं हिन्दुओंका सुल्तान हूँ। हिन्दमें मुसलमानोंकी संख्या बहुत कम है, शायद इनारमें एक ।”