पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२७२

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बाबा नूरदीन २७१ जो कि वे खैरातके तौर पर मुझे दे देते हैं। मैं समझता हूँ, इससे वेहतर जवाब मैं भी नहीं दे सकता ।"

  • लेकिन सुल्ताने जम । सुल्तानका इस्लामी फर्ज भी है।"
  • जिन्होंने ऐसा कसूर किया है, जिसकी सजा मौत है, उसे इस्लाम की शरणमें आने पर मैं जीनेकी इजाज़त दे सकता हूँ। जो गुलाम हैं और इस्लाम लाता है, उसे गुलामीसे मुक्त होने का हुक्म दे सकता हूँ। लेकिन खरीदकी कीमत शाही खजानेसे देकर; नहीं तो इस मुल्कमें करोड़ों-करोड़ों रुपये गुलामों पर लगे हैं। और सभी गुलामोंकी आजादीके लिये तो आप कह भी नहीं सकते है ।

"नहीं जहाँपनाह । गुलाम रखना तो अल्लाहतालाने भी जायज़ फर्माया है । "नहीं, यदि आप कहें तो तख्तको खतरेमें डाल मैं मुस्लिम, गैरमुस्लिम सभी दास-दासियोंको आजाद करनेका फर्मान निकाल देता हूँ ।” “नहीं | यह शरीअत के खिलाफ होगा ।।

    • शरीअतके खिलाफ होनेकी बातको छोड़े मुल्लासाहब । इस बक आपका ध्यान होगा किसी अमीना दासी पर । सबसे ज्यादा गुलाम तो हैं मुसलमानोंके घरों में ।

“और अल्लातालाने मोमिनोंके लिये उन्हें जायज्ञ ठहराया है। लेकिन यदि दास-दासियाँ भी मोमिन है ? फिर तो हुआ न कि आप उन्हें इस दुनियाँकी आजाद इवामे साँस लेने देना नहीं चाहते और सिर्फ बहिश्तकी उम्मीद पर रखना चाहते हैं ।” “मुझे और कहना नहीं है। इस्लामी सल्तनतमे इस्लामी शरीअत का शासन होना चाहिये, बस मै इतना ही कहना चाहता हूँ।" : ' लेकिन यह चाइना थोड़ा नहीं है। इसके लिये इस्लामी सल्तनत की अधिकाश प्रजाको मुसलमान होना चाहिये । आम लोंगोंके सामने—वज़ीर साहव ! आप भी सुनें-मैं अपने विचारों साफ रख देना चाहता हूं। सुल्तान महमूद जैसा एक विदेशी सुल्तान: अपनी 20 Norware) अली, ड-४)