पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२७३

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ર૭૨ वोलासे गंगा जबर्दस्त विदेशी सेनाके साथ शान्तिपूर्ण शहरोंको लूट, लूटकै माल को ऊँटों, खच्चरों पर लाद भले ही ले जा सकता था, लेकिन वही बात वाल-बच्चों के साथ दिल्लीमें बस जाने वाले मेरे जैसे आदमीके बूतेकी नहीं है। हमारी हुकूमत कायम है हिंदू प्रजाकी लगान पर, हिंदू सिपाहियों और सेनानायकों पर-मेरा सेनापति मालिक हिंदू है, चित्तौड़का राजा मेरे लिये पाँच हजार सेनाका सेनानायक है । लेकिन जहाँपनाह ! गुलाम सुल्तान भी तो दिल्ली ही में -रहते थे।"

  • आप हिचकिचाये मत, मुझे चंचल और गुस्सैल कहा जाता है, किंतु यह सब विरोधी विचारोंको सुननेसै मुझे रोक नहीं सकते। गुलामोंकी हुकूमत चिड़िया रैन बसेरा थी । मगोलोके तुफानसे हिंदुस्तानकी इस्लामिक सल्तनत बाल-बाल बची है, हिंदुओंको पता न था, कि मंगोलों जैसा दुश्मन मुसलमानोंने कभी देखा नहीं; नहीं तो जरा भी उन्होंने मंगोलोको शह दी होती, तो हिंदकी सरजमीनमें नया लगा इस्लाम का पौधा ठहर नहीं सकता था। जानते हैं न चंगेज़का खानदान दुनियाकी सबसे बड़ी सल्तनत चीन पर हुकूमत कर रहा है ?

जानता हूँ, हुजूर-बाला !" मुल्लाने कहा। और वह खानदान समनिया मल्लहवको मानता है ! समनिया ! उनके बहुतसे मठ-मंदिरोंके जला देने, बर्बादकर देने पर भी, अभी वह मज़हब, कुफ्रका साकार स्वरूप हिंदकी सरजमीनसे उठा नहीं । “कुफका साकार स्वरूप वही क्यों है । जहाँपनाह | हिंदु-ब्राह्मणों-के मज़हबमैं, तो सिरजनहार अल्लाहको ख्याल भी है, किंतु समनिया तो उससे बिल्कुल इनकार करते हैं।" "चगेजका खानदान आज नहीं उसके पोते कुबलेखानके जमानेसे ही अपने को समनोंका मुरीद मानता है। यही नहीं खुद चंगेशकी