पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२७५

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૨૭૪ वोगासै गंगा "तो जहाँपनाह ! सौ बरससे मरी इन पचायतोंको फिरसे हमें जिलाना होगा । "और दूसरा चारा नहीं। यदि इस्लामी सल्तनतको इस देशमें मजबूत करना चाहते हैं, तो प्रजाको सुखी और संतुष्ट रखनेकी हर प्रकार से कोशिश करनी होगी। उसके लिए हमें अपनी हिंदू-अजाके रीति, रवाज, कानून-कायदे का ख्याल रखना होगा, दिल्लीकी सल्तनतमें इस्लामी शरीअत । कानून } नही, सुल्तानी शरीअत बर्ती जायगी । इस्लामा प्रचार मुल्लोका काम है, उन्हें हम वज़ीफे दे सकते हैं। सूफियोका काम है और वह बहुत अच्छी तरह कर रहे हैं, उनकी खानकाहों ( मठों को हम नकद या सर्कारी लगान ( माफी ) दे सकते हैं । | वर्षों बीत चुकी थी; किंतु अभी भी ताल-तलैयोंमें पानी भरा हुआ था । बड़ी-बड़ी मेंड़ोंसे घिरे धानके खेतों में पानी भरा हुआ था, जिसमें धानके हरे-हरे पूँजे लहरा रहे थे। चारों ओर दूर तक फैली मगधकी इरी हरी क्यारियोंके बीच हिल्सा ( पटना का बड़ा गाँव था; जिसमे कुछ व्यापारियोंके ईंटेके पक्के मकान थे, बाकी किसानों और कारीगरोंके फूस या खपलके । इनके अतिरिक्त कुछ ब्राह्मणोंके घर थे, जो उनसे कुछ बेहतर अवस्थामें थे । हिल्साके मंदिरोंको सौ वर्ष पहिले ( मुहम्मद बिन ) बख्तियार खिलजीकी सेनाने ही ध्वस्त कर डाला था, और उसके बाद उनके खडहरोंमें ही हिन्दू जहाँ वहाँ पूजा कर लेते थे। गाँव पश्चिमी छोर पर बौद्धोंका मठ था, जिसका प्रतिमाह तो टूट फूट गया था, किन्तु घर अब भी आबाद थे। भठके भीतर घुस कर उसके निवासियों को देखकर कोई नहीं कह सकता था, कि बौद्ध-भितु उसे । छोड़कर चले गये हैं। | उस दिन शामके वक्त मठके बाहरके पत्थरके छोटे चबूतरे पर एक अधेड़ पुरुष बैठा था। उसके शरीर पर पीला काषाय था । उसका