पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२८

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• दिवा अकंटक राज्य नहीं । जन-समितिका शासन है, इसीलिए यहाँ किसी निशाको अपनी लेखाको वोल्गामें डुबानेकी जरूरत नहीं । - दिवा चार पुत्रों और पांच पुत्रियोंकी माँ है, पैंतालीस वर्षकी आयुमे वह निशा-जनकी जन-नायिका बनाई गई है। पिछले पच्चीस सालों में निशा-जनकी संख्या विंगुनी हो गई है। इसके लिये जब कभी सूर दिवाके ओठोंको चूमकर बधाई देता है, तो वह कहती है-यह अमिकी दया है, यह भगवान् ) का प्रताप है। जो अग्निकी शरण लेता है, जो भगवान्)की शरण लेता है, उसके चारों ओर - मधुकी धारा, इस वोल्गाकी धाराकी भाँति बहती है, उसके दारुओं (वन) में नाना मुग आकर चरते हैं। | निशा-अन जनके लिये बहुत मुश्किल है। निशाजन स्थान बदलते जहाँ जाता, वहाँ पहले के इतने जगलसे उसका काम नहीं चलता। उसे जन-दम (जन-गृह) ही तिगुना नहीं बनाना पड़ता, बल्कि तिगुने मृगया-क्षेत्रोंको भी लेना पड़ता । आज जिस मृगया-क्षेत्रमें उसने डेरा डाला है, उसके उत्तर उडा-जनको मृगया-क्षेत्र है । दोनों मृगया-क्षेत्रके बीच कुछ अस्वामिक वन है। निशा-जन अस्वामिक चनको ही नहीं उषा-जनके क्षेत्रमे भी शिकार करने कई बार गया । जन-समितिने उषा-जनसे झगड़ा होने की सम्भावनाको देखा, किन्तु उसे कोई उपाय नहीं सूझा । दिवाने जन-समितिमें एक दिन कहा था--भग( वान् ने इतने मुंह दियै, उन्हींके आहार के लिए ये बन हैं । इन बनोंको छोड़ इन मुखको आहार नहीं दिया जा सकता इसलिए निशा-जन इन जंगलोंके रीछों, गायों, घोड़ों को नहीं छोड़ सकता, वैसे ही जैसे इस वोल्गाकी मछलियोंको ।' | उघा-जनने निशा-जनको सरासर अन्याय करते देखा । उसकी - जन-समितिने कई बार निशा-जन-समितिसे बातचीतको । समझाया । बतलाया कि 'सनातन' कालसे हमारे दोनों जनोंमें कभी युद्ध नहीं,